इसके साथ ही एक बार फिर से भारत की अद्भुत संस्कृति के इंद्रधनुषी रंगों से भी दुनिया का परिचय हुआ। इन सबके बीच कर्तव्य पथ से भारत और मिस्र की दोस्ती की नई गाथा भी लिखी गई। दरअसल, इस बार कर्तव्य पथ पर हुए गणतंत्र दिवस समारोह में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी मुख्य अतिथि थे।
पहली बार अरब देश मिस्र के राष्ट्रपति भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए। यग अपने आपमें दोनों देशों के बीच दोस्ती की नई मिसाल है। मिस्र के साथ द्विपक्षीय संबंधों में यह एक महत्त्वपूर्ण अवसर है, जब भारत अपनी सैन्य कूटनीति के फलक पर मध्य-पूर्व एवं उत्तर अफ्रीकी देशों के साथ अपने सुरक्षा संबंधों का विस्तार कर रहा है। बालीवुड से भी मिस्र का काफी पुराना रिश्ता है। बालीवुड के कई प्रसिद्ध अदाकार जैसे राजकपूर, अमिताभ बच्चन, दिलीप कुमार आज भी वहां के लोगों के बीच प्रसिद्ध हैं। साथ ही सलमान खान और शाहरुख खान को भी वहां के लोग खूब प्यार करते हैं।
मिस्र के साथ भारत के संबंध हमेशा से ही सौहार्दपूर्ण रहे हैं। 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिलने के तीन दिन बाद ही दोनों देशों ने औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर के बीच गहरे दोस्ताना संबंध थे। दोनों नेताओं ने यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज टीटो के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी।
मिस्र परंपरागत रूप से भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण अफ्रीकी व्यापारिक साझेदारों में से एक रहा है। मार्च, 1978 से दोनों देश ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन क्लाज’ पर आधारित द्विपक्षीय व्यापार समझौते से बंधे हुए हैं। हाल के वर्षों में भारत-मिस्र व्यापार संबंधों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 3.15 बिलियन डालर के वर्तमान भारतीय निवेश के साथ भारत मिस्र में सबसे बड़े निवेशक के तौर पर उभर कर आया है।
भारत की तीन प्रमुख कंपनियों ने मिस्र में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए अठारह बिलियन डालर के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। सुरक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, आइटी, फार्मास्युटिकल्स, कृषि, उच्च शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे कई क्षेत्रों में भारत और मिस्र के बीच बहुआयामी साझेदारी मजबूत हो रही है। दोनों देशों को अपनी दोस्ती और मजबूत करनी चाहिए, ताकि आने वाले समय में लोग तरक्की करें।
पंकज सिंह, दिल्ली।
हिरासत में यातना
आए दिन भारत के विभिन्न राज्यों से पुलिस हिरासत में मौत के मामले समय-समय पर सामने आते रहे हैं। इसके सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश में देखे गए हैं। सवाल इस बात का उठता है कि छोटे-बड़े अपराध में पुलिस विभिन्न प्रकार की भेदभाव भी करती है और पक्षपातपूर्ण रणनीति भी अपनाती है। इस तरह के मामलों में देखा गया है कि छोटे-छोटे अपराधों में पुलिस आरोपी की इतनी बर्बरता से पिटाई करती है कि अनेक बार तो पुलिस की हिरासत में ही मौत हो जाती है।
अनेक मामले इस प्रकार के देखे गए हैं। यों उच्चतम न्यायालय ने किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले आरोपी की चिकित्सीय जांच कराए जाने को अनिवार्य बनाया हुआ है, लेकिन उच्चतम न्यायालय के इस निर्देश का पालन अक्सर नहीं किया जाता। पुलिस आरोपी से इस तरह से व्यवहार करती है कि कई बार उसकी पिटाई से ही मौत हो जाती है।
ऐसे मामलों पर समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र और मानव अधिकार संगठनों की ओर से भी विभिन्न प्रकार की आपत्तियां देखने को मिलती हैं। उसके पश्चात भी इस तरह के मामलों में न केवल लीपापोती होती है, बल्कि पीड़ित को न्याय तक नहीं मिल पाता। पुलिस हिरासत में मौत के मामले के साथ-साथ विभिन्न तरह के ऐसे भी मामले देखे गए हैं जो निर्दोष व्यक्ति को पुलिस मुठभेड़ करके हमेशा के लिए नींद सुला देती है।
जबकि उस पर लगे कोई भी आरोप सिद्ध होने बाकी होते हैं। सही है कि पुलिस की ओर से कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन किसी भी हाल में निर्दोष के साथ अत्याचार नहीं होना चाहिए। यहां तक कि आरोपी को भी बिना सिद्ध हुए सजा नहीं दिया जा सकता। पुलिस हिरासत में यातना हर तरह से गलत है। इस स्थिति से पुलिस को बचना चाहिए। यह बेवजह नहीं है कि पुलिस की छवि आम जनता के बीच सकारात्मक नहीं पाई जाती है। जबकि जरूरत इस बात की है कि पुलिस आम जनता के हक में दोस्ताना स्वरूप में काम करे, ताकि किसी अपराध की स्थिति में सही दोषियों को पकड़ने और उसे सजा दिलाने में आम जनता भी पुलिस से सहयोग करे।
मीना धानिया, सिरसपुर।
स्वनिर्भर भारत
कुछ समय पहले हम ‘मेड इन इंडिया’ को एक प्रमुख नारा मानते थे। लेकिन वे वस्तुएं भारत में तो बनी हुई होती हैं, लेकिन भारत की कंपनी द्वारा नहीं बनी होती हैं। यानी वस्तु का निर्माण विदेशी कंपनी द्वारा भारत में किया गया होता है। इसके विपरीत जरूरत इस बात की है कि भारत की कंपनी द्वारा भारत में कोई उत्पाद बनाया जाए। यह व्यवस्था मजबूत की जानी चाहिए।
कहने का तात्पर्य है कि अगर सरकार नई नीति बनाए और उसे अमल में लाने के लिए ठोस प्रयास करे तो देश की अपनी कंपनी और उसमें बना सामान होगा और इससे देश का निर्यात भी बढ़ेगा। हालांकि यह कार्य मुश्किल तो है, लेकिन नामुमकिन नहीं। अगर खुद की भारतीय कंपनियों का विस्तार किया जाए, उनकी क्षमता बढ़ाई जाए तो भारत को अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में एक नई पहचान मिलेगी और रोजगार के भी मार्ग खुलेंगे।
दीपक महतो, दिल्ली।
भरोसे का माध्यम
सोशल मीडिया और इंटरनेट जैसी तकनीकी के जितने फायदे हैं, उतना ही दुष्परिणाम भी समान रूप से देखे-समझे जा सकते हैं। कभी आनलाइन ठगी का शिकार और कभी सूचना की ठगी। उस पर उच्चतम न्यायालय का विकिपीडिया को लेकर हाल का ही बयान। इससे साबित होता है कि प्रिंट मीडिया की लोकप्रियता और विश्वसनीयता अभी तक एक अच्छी है। पर युग डिजिटल और तेज हो गया है, इसलिए लोग अन्य माध्यमों का उपयोग तो करते हैं, पर उन्हें विश्वसनीय नहीं मानते।
मनोज, मेरठ।