सर्वोच्च न्यायालय का यह ऐतिहासिक फैसला सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्त्वपूर्ण है। गरीबी से बड़ा कोई भी अभिशाप नहीं है। आर्थिक आधार पर आरक्षण शायद लोगों को गरीबी से निकालने में मददगार साबित होगा।
आज हर जाति और धर्म में गरीबी व्याप्त है, इसीलिए सिर्फ जातीय आधार पर पिछड़ेपन का पैमाना रखना उचित प्रतीत नहीं होता है। सामान्य वर्गों को दिया जाने वाला यह आरक्षण किसी दूसरे वर्ग का हक नहीं छीन रहा है, उसके बावजूद कुछ राजनीतिक दलों द्वारा इसकी निंदा करना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस फैसले के उपरांत, अभी तक जातियों तक सीमित रहे आरक्षण में नए वर्ग और नए आयाम जुड़ने के रास्ते खुलते नजर आ रहे हैं।
अब आरक्षण के विषय में लोगों को दोबारा से सोचने की आवश्यकता है। सच्चाई तो यह है कि आजादी के सात दशक बाद भी आरक्षण के द्वारा किसी जाति का पूर्ण रूप से कायाकल्प नहीं हो सका है। कुछ खास समुदाय के लोग आज भी आरक्षण के लाभ से वंचित हैं, इसलिए आरक्षण की समीक्षा करते हुए उसे नए सिरे से निर्धारित करने की आवश्यकता है,तभी आरक्षण का मूल उद्देश्य पूरा हो सकेगा।
हिमांशु शेखर, गया।
सेंधमारी का खतरा
आज सोशल मीडिया का इस्तेमाल आम हो गया है। बच्चों से लेकर हर उम्र के लोग इस माध्यम पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रहे हैं। इसके जितने इसके फायदे हैं, उतने नुकसान भी हैं। सबसे बड़ा नुकसान दूसरों के खाते में सेंधमारी है। इस काम में कई कंपनियां तक शामिल हैं। ये कंपनियां पूरे भारत में अपने काम को अंजाम दे रही हैं और वरिष्ठ नागरिकों के ईमेल और फोन तक चुरा रही हैं।
हाल में यह खबर आई कि सेंधमारी को अंजाम देने के लिए दुनिया भर के निजी जासूस पैसा तक खर्च कर रहे हैं। ‘द संडे टाइम्स’ और ‘ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेट’ कई भारतीय आकर का पर्दाफाश करने के लिए एक स्टिंग आपरेशन किया। इसमें सामने आया की तानाशाह देश ब्रिटिश वकीलों और अपने अमीर ग्राहकों के लिए काम करने वाले निजी जासूसों के वास्ते सेंधमार पीड़ितों के ईमेल खातों और संदेशों को हैक करने के लिए अपनी सेवाओं की पेशकश कर रहे हैं। यह वाकई गंभीर समस्या बन गई है। अगर इस दिशा में पर जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया गया तो किसी दिन भी सेंधमार महासंकट को जन्म दे सकते हैं।
रुचि कुमारी, दिल्ली</p>