चौपाल: गांधी को गिराना
बापू ने पूरे विश्व को अहिंसा की अजेय शक्ति से परिचित करवाया। गांधी में मनोबल का एक अद्भुत प्रकाश छिपा था, जिसकी किरणों ने दासता, दुर्बलता, अज्ञान और अशिक्षा के घनीभूत अंधकार को चीर दिया था।

अमेरिका में शनिवार को अराजक तत्वों ने महात्मा गांधी की प्रतिमा को खंडित कर दिया और गिरा दिया। इस घटना की पूरी दुनिया में कड़ी निंदा हुई है। होनी भी चाहिए। अमेरिका में ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं। अमेरिकी सरकार को चाहिए कि वह ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। महात्मा गांधी को आज न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में शांतिदूत के रूप में याद किया जाता है।
बापू ने पूरे विश्व को अहिंसा की अजेय शक्ति से परिचित करवाया। गांधी में मनोबल का एक अद्भुत प्रकाश छिपा था, जिसकी किरणों ने दासता, दुर्बलता, अज्ञान और अशिक्षा के घनीभूत अंधकार को चीर दिया था। ऐसे में उस शांति दूत की प्रतिमा को खंडित करके हम क्या संदेश देना चाहते हैं? अमेरिका में हुई इस घटना से भारतीय जनमानस बुरी तरह आहत हुआ है।
गांधी की प्रतिमा को खंडित करने वाले भारत और भारतीयों के दुश्मन हैं। अलगाववादी और शरारती तत्व कितना भी सिर उठा कर अत्याचार कर लें, लेकिन गांधी दर्शन विश्व से मिट नहीँ सकता है। गांधी का जीवन सत्य अहिंसा की जीती जागती प्रयोगशाला थी। ऐसे महान व्यक्ति का अपमान कोई भी देश सहन नहीं कर सकता।
’कांतिलाल मांडोत, सूरत
संवाद ही रास्ता
इस कड़ाके की सर्द रातों में जब हर कोई अपने घर में सो रहा होता है तो कुछ लोग पूरी रात जाग कर सीमा पर दुश्मनों से देश की रक्षा कर रहे होते हैं, जिन्हें हम देश के वीर जवान सैनिक कहते हैं। अब इन्हीं के साथ एक और नाम जोड़ दिया जाए किसान का भी, जो पिछले दो महीने से भी से ज्यादा समय से अपनी वाजिब मांगों को लेकर धरने पर हैं और सरकार की तानाशाही झेल रहे हैं।
इनकी सिर्फ एक ही मांग है कि नए कृषि कानूनों को सरकार वापस ले, क्योंकि ये उनके हितों पर कुठाराघात करने वाले हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री का एक नारा था- जय जवान, जय किसान। एक वक्त था जब दोनों की जय-जयकार होती थी। लेकिन आज किसान किस दयनीय हालत में हैं, यह किसी से नहीं छिपा है।
पिछले कुछ सालों में देखा जाए तो भारतीय इतिहास में अब तक ऐसी घटनाएं घटित नहीं हुई थीं जो अब हो रही हैं। संशोधित नागरिकता कानून, जेएनयू का मुद्दा और अब किसान आंदोलन सभी को मिला कर देखें तो पता चलेगा कि हमने आखिर क्या नहीं खो दिया। लेकिन सरकार अपने अड़ियल रवैये पर कायम है। दस बार भी किसानों और सरकार के बीच हुई वातार्ओं का सकारात्मक नतीजा नहीं निकल सका। अब दो ही उपाय हैं या तो सरकार पीछे हटे या फिर किसान घर जाएं। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। ऐसे में अगर रास्ता बचता है तो सिर्फ एक ही और वह संवाद का। नए सिरे से सकारात्मक रुख के साथ संवाद की पहल हो और किसानों के हितों का ध्यान रखा जाए।
’सूरज सरकार, इलाहाबाद विवि