आरोपों की भेंट
भारतीय लोकतंत्र में जनता की सबसे ऊंची प्रतिनिधि संस्था हमारी संसद है जहां देश की समस्याओं पर चर्चा होती है और जरूरतों के मुताबिक कानून बनाए जाते हैं। लेकिन यह सोच और जिम्मेदारी अब ध्वस्त होती नजर आ रही है। इस बार फिर संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही राजनीतिक दलों के बीच सियासत […]
भारतीय लोकतंत्र में जनता की सबसे ऊंची प्रतिनिधि संस्था हमारी संसद है जहां देश की समस्याओं पर चर्चा होती है और जरूरतों के मुताबिक कानून बनाए जाते हैं। लेकिन यह सोच और जिम्मेदारी अब ध्वस्त होती नजर आ रही है। इस बार फिर संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही राजनीतिक दलों के बीच सियासत गर्म हो गई है। पिछले कुछ महीनों से भारतीय जनता पार्टी अपने मंत्रियों और नेताओं की क्रियाकलाप को लेकर जबरदस्त दबाव में है। जहां एक तरफ प्रधानमंत्री द्वारा संसद में विपक्ष पर आक्रामक रवैया अपनाने की बात कही जा रही है वहीं दूसरी तरफ विपक्ष कम से कम सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और स्मृति ईरानी के इस्तीफे पर अड़ा है। भूमि अधिग्रहण विधेयक के अलावा व्यापमं में शिवराज, खाद्यान्न घोटाले में रमन सिंह, ललित गेट और चिक्की घोटाले में पंकजा मुंडे को लेकर विपक्ष संसद में भाजपा को घेर रहा है। वहीं भाजपा इन मामलों को ‘संतुलित’ करने के लिए कांग्रेस की कमजोर कड़ी रॉबर्ट वाड्रा, केरल के सोलर घोटाले और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के सचिव के ‘स्टिंग’ से जवाब देने की तैयारी कर रही है। ऐसा लगता है कि यह सत्र भी आरोपों की भेंट चढ़ जाएगा। शायद लोकतंत्र से हमारे नुमाइंदों को कोई लेना-देना नहीं है। दुनिया में तेजी से फैल रही आर्थिक मंदी को लेकर इन्हें रत्तीभर डर या चिंता नहीं है जबकि इसके प्रभाव से हम भी अछूते नहीं रह पाएंगे। धीरेंद्र गर्ग, सुल्तानपुर
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