हमारे देश में आजादी के पहले से लेकर अभी तक बने ढेरों कानून हैं जिनमें से अधिकतर की जानकारी जनसाधारण को नहीं होती। जब व्यक्ति जाने-अनजाने किसी कानून का उल्लंघन करके न्यायालय के चक्कर लगाता है तब उसे संबंधित कानून की गंभीरता और महत्त्व का अंदाजा होता है। विधि के क्षेत्र में प्रसिद्ध अवधारणा प्रचलित है कि कोई व्यक्ति कानून के प्रति अनभिज्ञता जता कर उसके उल्लंघन के आरोप को नकार नहीं सकता। इसलिए कानून की जानकारी होना प्रत्येक नागरिक के लिए बेहद जरूरी है। नागरिकों को कानूनों के जानकारी के अभाव के कारण होने वाली समस्याओं से निजात दिलाने और जागरूक बनाने के उद्देश्य से ही जिला स्तर पर विधिक साक्षरता प्राधिकरण का गठन किया गया है।
1987 में बने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार विधिक सेवा कार्यक्रम के अंतर्गत तुलनात्मक रूप से पिछड़े, कम शिक्षित, समाज के हाशिये पर खड़े कमजोर व्यक्तियों को विधिक सेवा उपलब्ध कराई जाती है, साथ ही मुख्यधारा से कटे, पहुंचविहीन सुदूर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में चलित शिविर लगाकर आम लोगों को विभिन्न विधिक प्रावधानों से अवगत कराते हुए उन्हें कानूनी रूप से साक्षर बनाने का प्रयास किया जाता है। वाहन चालन से सबंधित लाइसेंस, वाहन के बीमे, वाहन बेचने पर नामांतरण की जरूरत व महत्त्व की जानकारी के अभाव में दुर्घटना हो जाने पर संबंधित पक्ष मोटर वाहन कानून के सामान्य से प्रावधानों में भी बुरी तरह उलझ जाता है। नियमों के साथ-साथ अपने कानूनी अधिकारों की जानकारी न होने के कारण कई विचाराधीन बंदी अपराध के लिए तय सजा से ज्यादा वक्त तक जेल में कैद रहते हैं। ऐसे ढेरों उदाहरण हैं जो विधिक साक्षरता के महत्त्व को रेखांकित करते हैं।
विधिक ज्ञान से वंचित व्यक्ति कानून से डर कर उससे दूर भागता है। विधिक सेवा कार्यक्रमों और विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिए आम जन को जागरूक बना कर उनका सशक्तीकरण किया जा सकता है। कानूनी प्रक्रियाओं के प्रति उनके भय को मिटा कर उन्हें विश्वास दिलाया जा सकता है कि तमाम तरह के कानून आम जनता के जीवन को सुगम बनाने के लिए बनाए गए हैं न कि उसे परेशान करने के लिए। इस तरह के कार्यक्रमों से जनता और शासन के बीच की दूरी को खत्म किया जा सकता है।
ऋषभ देव पांडेय, सूरजपुर, छत्तीसगढ़
वक्त का तकाजा: हमें बस सिनेमा या टीवी पर दिखाया गया प्रेम अच्छा लगता है। हमारी आम जीवन शैली में ऐसे प्रेम की दूर-दूर तक कोई जगह नहीं है। अगर किसी ने ‘ऐसा प्रेम’ करने की हिम्मत कर भी ली तो खाप पंचायतों के तथाकथित उच्च आदर्श उसकी राह का रोड़ा बन जाते हैं। यहां मुख्य समस्या पीढ़ियों के टकराव की है। एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी के विचारों, धारणाओं को समझने में विफल हो रही है।
ठहरे हुए पानी से भी बदबू आने लगती है। कुदरत का यही नियम रूढ़ परंपराओं पर भी लागू होता है। सभ्य समाज के निर्माण में अगर पंचायतों को भूमिका अदा करनी है तो उन्हें आज की जरूरत के हिसाब से अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा। जरूरी नहीं कि जमाने को देखने के लिए एक ही तरह का चश्मा लगाया जाए। वक्त के तकाजों के हिसाब से कई बार नजर और नजरिया दोनों बदलने पड़ते हैं।
रिम्पी, कैथल, हरियाणा
अमन से दूर यमन: अरब विश्व का एक प्रमुख देश यमन पिछले चार साल से गृहयुद्ध का दंश झेल रहा है। अब तक दस हजार के करीब नागरिक मारे जा चुके हैं। लाखों लोगों तक जीवन की आधारभूत जरूरत की चीजें नहीं पहुंच रही हैं। नतीजतन, सवा करोड़ यमनी नागरिक आज भुखमरी झेलने को मजबूर हैं। हुथी विरोधियों के खात्मे के नाम पर सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका मिल कर जब चाहे जहां चाहे बम बरसा रहे हैं। यही हाल इन देशों ने सीरिया का कर रखा है। इराक में आणविक हथियार तलाशने के नाम पर लाखों लोगों को मार दिया गया। ये विदेशी ताकतें क्यों अरब दुनिया में उथल-पुथल मचाए हुए हैं? क्यों अरबों को शिया और सुन्नी खेमे में बांटा जा रहा है? क्यों अमेरिका ईरान को सजा देने पर आमादा है?
इन सवालों के जवाब तलाशने पर पता चलता है कि इजराइल बहुत हद तक सऊदी अरब को अपने खेमे में मिला चुका है। यह खेमा हर संभव प्रयास कर रहा है कि अरब जगत में एकता न हो। अगर एकता हो गई तो इजराइल की खैर नहीं। इजराइल फिलस्तीनियों के साथ जो कर रहा है उससे अरब लोगों ध्यान बांटने के लिए यह सब हिंसा और प्रतिहिंसा का खेल खेला जा रहा है। हम कह सकते हैं कि अरब, मध्य-पूर्व और खाड़ी के देशों में अस्थिरता का नया दौर एकदम प्रायोजित है।
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर
पर्यावरण के साथ: सिंगापुर में 1972 से बिना अनुमति पटाखे चलाने पर प्रतिबंध है। वहां इस साल दिवाली पर पटाखे चलाने के कारण चार भारतवंशियों के खिलाफ आरोप तय किए गए। यह समाचार ध्यान देने योग्य व प्रेरित करने वाला है। अगर हमें अपने देश को पटाखों के प्रदूषण से बचाना है तो सिंगापुर की तरह सख्ती दिखाना ही होगी। इस साल सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर पटाखे चलाने का समय और उनका प्र्रकार तय किया था। लेकिन विडंबना है कि हमने कोर्ट के दिशा-निर्देशों की अनदेखी कर न केवल करोड़ों रुपए के पटाखे फोड़ दिए, बल्कि प्रदूषण भी सतहत्तर फीसद बढ़ा दिया।
दरअसल, अब सरकार, सामाजिक संगठनों और हम सबको समझना ही होगा कि पर्यावरण से हम हैं और हम से पर्यावरण है। पर्यावरण प्रदूषित या असंतुलित होता है तो उसका खमियाजा हम सभी इंसानों, जीव-जंतुओं को भुगतना पड़ता है। हम शिक्षा की दृष्टि से तो आगे बढ़े हैं, लेकिन कई कामों में अब भी पिछड़े हुए हैं। अगर पटाखों पर होने वाले व्यय को बचा कर उससे पेड़-पौधे लगाने का काम करें तो यह हम सबके और देश के लिए सबसे अच्छी दिवाली होगी।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरौद, उज्जैन
किसी भी मुद्दे या लेख पर अपनी राय हमें भेजें। हमारा पता है : ए-8, सेक्टर-7, नोएडा 201301, जिला : गौतमबुद्धनगर, उत्तर प्रदेश<br />आप चाहें तो अपनी बात ईमेल के जरिए भी हम तक पहुंचा सकते हैं। आइडी है : chaupal.jansatta@expressindia.com