नकल का कारोबार
इससे पहले कि प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता रसातल में चली जाए सरकारों को सचेत हो जाना चाहिए। बात चाहे राज्य स्तर की प्रतियोगी परीक्षा की हो या केंद्र स्तर की, नकल माफियाओं ने इसकी साख पर बट््टा लगा दिया है। अगस्त 14 में सीमा सुरक्षा बल के रेडियो आॅपरेटर की प्रवेश परीक्षा का पेपर वाट्सएप […]
इससे पहले कि प्रतियोगी परीक्षाओं की विश्वसनीयता रसातल में चली जाए सरकारों को सचेत हो जाना चाहिए। बात चाहे राज्य स्तर की प्रतियोगी परीक्षा की हो या केंद्र स्तर की, नकल माफियाओं ने इसकी साख पर बट््टा लगा दिया है। अगस्त 14 में सीमा सुरक्षा बल के रेडियो आॅपरेटर की प्रवेश परीक्षा का पेपर वाट्सएप के माध्यम से लीक हो गया। इसमें करीब डेढ़ लाख अभ्यर्थी शामिल हुए थे। एसटीएफ की जांच में गजब का गोरखधंधा उजागर हुआ। प्रश्न-पत्र छापने का ठेका जिस कंपनी को दिया गया उसका पता फर्जी निकला। कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) प्रवेश परीक्षा की दूसरी पाली का प्रश्न-पत्र लीक हो गया। नकल माफियाओं ने वाट्सएप के जरिए प्रश्न-पत्र के उत्तर खरीदारों तक पहुंचाने में सफल रहे। एसटीएफ की जांच में यह तथ्य सामने आया कि एसएससी का पेपर आउट कराने के आरोप में फरार सरगना ने गिरोह की पूरी कमान एक दूसरे युवक को सौंप दी थी। इसी ने दो सितंबर को एसएससी का पर्चा अपने गुर्गों को वाट्सएप के जरिए भेजा था। सोलह नवंबर को एक बार फिर एसएससी के प्रश्न-पत्र बरेली जिले से लीक हो गया। फिर तेईस नवंबर को रेल भर्ती प्रकोष्ठ (आरआरसी) उत्तर-मध्य रेलवे की ग्रुप डी परीक्षा की हल की हुई कॉपी बेचने पर चार युवकों को पकड़ा गया। जबकि जांच में यह बात सामने आई कि हल प्रश्न-पत्र की कॉपी फर्जी थी।
बहरहाल, नकल माफियाओं का नेटवर्क इतना व्यापक है कि देश की किसी प्रवेश परीक्षा का मजाक बनाने में सक्षम हो गया है! पंद्रह दिसंबर को संपन्न हुई सिपाही भर्ती की मुख्य लिखित परीक्षा की शुचिता भी नकल माफियाओं के आगे बेबस साबित हुई। इस परीक्षा में अभ्यर्थी के स्थान पर आठ पेपर हल करने वाले समेत कई अभ्यर्थी पकड़े गए। इस आलोक में एक ऐसा हैरतअंगेज वाकया सामने आया, जो बहुत कुछ सोचने पर विवश करता है। घटना वाराणसी जिले की है। करीब चार माह पहले बैंक में क्लर्क की परीक्षा हुई थी। भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा में पचीस लोगों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। कागजात की जांच में बैंककर्मियों को पांच अभ्यर्थी संदिग्ध मिले। किसी के अंगूठे का निशान तो किसी का हस्ताक्षर नहीं मिला। संदेह पुख्ता होने पर बैंककर्मियों के पूछे जाने पर वे कोई जवाब नहीं दे सके। पर इस घटना ने जो यक्ष प्रश्न खड़ा किया है उसका जवाब कौन देगा।
आखिर कोई अभ्यर्थी साक्षात्कार के लिए बैंक कैसे चला आएगा। घटनाएं इस तथ्य की ओर इशारा करती हैं कि असली अभ्यर्थी यही थे, जो आज सलाखों के पीछे हैं। साक्षात्कार के दौरान पूछे गए प्रश्न का सही जवाब न मिलना सिद्ध करता है कि इनकी जगह किसी अन्य ने परीक्षा दी थी। उसने अपना काम कर दिया। लेकिन वे नहीं कर सके, जिन्होंने बैंक की नौकरी के लिए सारे हथकंडे अपनाए थे। अंगूठे के निशान और हस्ताक्षर ने सारे किए पर पानी फेर दिया। इसी के साथ उस सवाल को जन्म दिया कि क्या चार महीने पहले संपन्न हुई भारतीय स्टेट बैंक की परीक्षा में धांधली का ऐसा खेल खेला गया जिसकी भनक किसी को नहीं लगी। आखिर वे अभ्यर्थी कौन हैं जिन्होंने परीक्षा हाल में कक्ष निरीक्षक के सामने अंगूठा और हस्ताक्षर किए थे। हो सकता है कि पकड़ में आए पांच फर्जी अभ्यर्थियों के माध्यम से उन लोगों के चेहरे से नकाब उतरे, जो परदे के पीछे खेलने में माहिर हैं। आए दिन प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न-पत्र लीक होना और पेपर हल करने वालों के माध्यम से सीट पक्की करना इन परीक्षाओं की नियति हो गई है।
बहरहाल, नकल माफियाओं की बढ़ती ताकत को निष्प्रभावी करने के लिए आवश्यक है कि समाज आगे आए। पैसे और तिकड़म के भरोसे हम अपने लाड़ले को उस मुकाम पर देखना चाहते हैं जिसका वास्तविक हकदार कोई और है।
धर्मेंद्र कुमार दुबे, वाराणसी
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