चौपाल: प्लास्टिक से आजादी
गौरतलब है कि हमारे देश में हर साल 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा निकलता है जिसमें से सिर्फ नौ हजार टन पुनर्चक्रित (रिसाइकिल) हो पाता है।

प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपील की है कि वे महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को भारत को प्लास्टिक मुक्त बनाने के दिवस के रूप में मनाएं। साथ ही उन्होंने नगर निकायों, गैर सरकारी संगठनों और कारपोरेट सेक्टर का आह्वान किया कि वह प्लास्टिक कचरे का दिवाली से पहले निस्तारण करने के लिए आगे आए। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस पर भी देशवासियों से एक ही बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का प्रयोग बंद करने का आह्वान किया था। केंद्र सरकार का प्लास्टिक से निपटने का यह प्रयास प्रशंसनीय ही नहीं सराहनीय भी है। असलियत यह है कि प्लास्टिक कचरे की समस्या से आज समूचा विश्व जूझ रहा है। इससे मानव ही नहीं बल्कि समूचा जीव-जंतु एवं पक्षी जगत तक प्रभावित है। यदि इस समस्या पर शीघ्र ही अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में स्थिति और विकराल हो जाएगी और तब इससे निपटना असंभव हो जाएगा।
गौरतलब है कि हमारे देश में हर साल 56 लाख टन प्लास्टिक कचरा निकलता है जिसमें से सिर्फ नौ हजार टन पुनर्चक्रित (रिसाइकिल) हो पाता है। यही नहीं, छह हजार टन प्लास्टिक हर साल फेंका जाता है जो अंत में समुद्र में जाकर मिल जाता है। इससे समुद्री जीव-जंतओुं का जीवन संकट में आ जाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश के अकेले चार महानगरों में से दिल्ली में 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन और मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा हर रोज फेंका जाता है जो कई सालों तक पर्यावरण में मौजूद रहता है।
प्लास्टिक से निपटने के मामले में हमारा देश बांग्लादेश, आयरलैंड, आस्ट्रेलिया और फ्रांस से भी पीछे है। बांग्लादेश ने तो अपने यहां 2002 में ही प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया था। कारण, वहां के नाले प्लास्टिक के चलते जाम हो गए थे। आयरलैंड ने प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर अपने यहां 90 फीसद तक टैक्स लगा दिया है। ऑस्ट्रेलिया सरकार ने अपने नागरिकों से स्वेच्छा पूर्वक प्लास्टिक के इस्तेमाल में कमी लाने की अपील की। नतीजतन, वहां इसके इस्तेमाल में 90 फीसद की कमी आ गई।
फ्रांस ने अपने यहां इसके इस्तेमाल पर 2002 से पाबंदी लगाने का काम शुरू किया जो 2010 तक पूरा हो गया। देर से ही सही, हमारी सरकार ने भी प्लास्टिक पर रोक लगाने पर विचार किया लेकिन इस अभियान में आम लोगों का सहयोग बेहद जरूरी है। लोगों को समझना होगा कि प्लास्टिक का इस्तेमाल हमें कुछ पलों के लिए सहूलियत जरूर देता है। लेकिन कुछ पलों की सहूलियत भविष्य के लिए बड़ा संकट है।
’रोहित यादव, महर्षि दयानंद विवि, रोहतक