चौपाल: उपेक्षित चुनावकर्मी
लोकतंत्र में सबका वोट महत्त्वपूर्ण होता है। इसके लिए सरकार, विपक्ष और स्वयं चुनाव आयोग ने खूब विज्ञापन किए लेकिन मतदान कर्मियों के वोट को कोई पूछने वाला नहीं। एक फार्म जरूर भरवा लिया गया लेकिन उनका वोट भी पड़ सके इसकी चिंता किसी को नहीं।

सत्रहवीं लोकसभा का चुनाव आखिरी चरण में पहुंच चुका है। देश के सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से अपनी सरकार बनाने के दावे करने लगे हैं। चुनाव आयोग भी छिटपुट घटनाओं को छोड़ कर शांतिपूर्ण चुनाव करा लेने के लिए कुछ दिन बाद अपनी पीठ ठोकता नजर आएगा। लेकिन इस सबके बीच चुनाव में एक वर्ग ऐसा है जो हमेशा पर्दे के पीछे की भूमिका में रहता है पर उसकी बात कोई नहीं करता। यह वर्ग है मुस्तैदी से काम करने वाले मतदान अधिकारियों-कर्मचारियों का। जिस दिन से उनकी चुनाव ड्यूटी की ट्रेनिंग शुरू होती है और जब तक चुनाव संपन्न नहीं हो जाता तब तक दिन का चैन और रातों की नींद हराम करके उन्हें चुनाव कराने की जिम्मेदारी दे दी जाती है। चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव पर पानी की तरह पैसा बहाया जाता है लेकिन इन मतदान अधिकारियों की बुरी तरह उपेक्षा होती है।
एक मतदान अधिकारी के मुताबिक चुनाव ट्रेनिंग ड्यूटी में पहले दिन खाने की व्यवस्था थी तो दूसरे दिन ब्रेड पकौड़े और चाय की। तीसरे दिन एक कप चाय कतार में लग कर लेनी थी जैसे चुनाव अधिकारी हम पर एहसान कर रहे हों! चौथे और पांचवें दिन तो चाय का कप भी गायब हो गया। चुनाव के दिन का और बुरा हाल। केंद्र पर चार बजे बुला लिया गया और मशीनें दी गर्इं पांच बजे के बाद। घर से सुबह तीन बजे निकले सभी मतदान अधिकारी अगले दिन सुबह तीन से चार बजे तक घर पहुंचे। मतदान के दौरान केंद्र पर एक कप चाय तक की व्यवस्था नहीं थी। क्या यह चुनाव आयोग की जिम्मेवारी नहीं थी कि जिनके बल पर चुनाव का पूरा कार्यक्रम बना रखा है उनके लिए मतदान केंद्र पर कुछ तो अपनी देखरेख में करे? चुनाव संपन्न होने के बाद कौन कहांं से आया है और रात को तीन-चार बजे कैसे अपने घर पहुंचेगा कोई पूछने वाला नहीं। क्या चुनाव आयोग की इसके प्रति कोई जवाबदेही नहीं है?
लोकतंत्र में सबका वोट महत्त्वपूर्ण होता है। इसके लिए सरकार, विपक्ष और स्वयं चुनाव आयोग ने खूब विज्ञापन किए लेकिन मतदान कर्मियों के वोट को कोई पूछने वाला नहीं। एक फार्म जरूर भरवा लिया गया लेकिन उनका वोट भी पड़ सके इसकी चिंता किसी को नहीं। मतदानकर्मी सबका वोट डलवाएं और उनका खुद का वोट न पड़े तो यह चुनाव आयोग की बड़ी विफलता है! वीवीपैट पर चुनाव से पहले खूब शोर मचा और चुनाव आयोग ने उसकी विश्वसनीयता के खूब ढोल पीटे। लेकिन चुनाव के दौरान वीवीपैट मेंं खूब शिकायतें आर्इं। जब इतनी अधिक मात्रा में मशीन में गड़बड़ी की शिकायतें आई हैं तो क्या चुनाव आयोग इसकी जवाबदेही से बच जाता है?
’सुशील कुमार शर्मा, विश्वास पार्क, दिल्ली
सेना का संकट
एक ऐसे समय जब सेना की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं, तब उसकी ओर से इस आशय की चिट्ठी का सामने आना चिंताजनक है कि उसे खराब किस्म के गोला-बारूद की आपूर्ति हो रही है। सेना को घटिया युद्धक सामग्री की आपूर्ति किया जाना बेहद गंभीर मामला है। केवल इसकी तह तक नहीं जाना चाहिए, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सेना की अन्य जरूरतें भी समय पर पूरी हों। चूंकि घटिया गोला-बारूद की शिकायत करने के लिए सेना को चिट्ठी लिखनी पड़ी, इसलिए यह सहज ही समझा जा सकता है कि उसकी समस्या सच में संकट पैदा करने वाली है।
’हेमंत कुमार, भागलपुर