वैचारिक गंदगी
पिछले काफी समय से देश की हर राजनीतिक पार्टी में कुछ जिम्मेदार कहे जाने वाले नेता ही गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी करते नजर आ रहे हैं।

पिछले काफी समय से देश की हर राजनीतिक पार्टी में कुछ जिम्मेदार कहे जाने वाले नेता ही गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी करते नजर आ रहे हैं। ज्यादा हल्ला होता है तो वे अपने बयानों से पलट जाते हैं या फिर सफाई पेश कर देते हैं। पार्टी भी उनके बयानों को ‘व्यक्तिगत विचार’ कह कर पल्ला झाड़ लेती है। उन पर कोई विशेष कार्रवाई नहीं होती और सबकुछ फिर सामान्य हो जाता है।
आखिर क्यों नहीं पार्टियां उनके बेहूदा बयानों को गंभीरता से लेकर उचित कदम उठातीं ताकि पार्टी की छवि को धूमिल होने बचाया जा सके? सफाई पेश करना या पल्ला झाड़ लेना समाधान तो नहीं हो सकता? किसी की बेटी-बहू के बारे में अशोभनीय बात कहना या फिर किसी व्यक्ति, संस्था या संप्रदाय के प्रति ऊलजलूल टिपण्णी कर देना, फिर सफाई पेश करना या खेद जता देना कितना उचित है? आखिर कारण क्या है कि ऐसे बयानवीरों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है?
उनमें शिक्षा की कमी है या समझ की? क्या पार्टी के आलाकमान की उन पर पकड़ कमजोर पड़ती जा रही है अथवा राजनीति में ही गंदगी प्रवेश करती जा रही है? स्वच्छ भारत अभियान तब और ज्यादा सफल हो सकता है जब बाहरी सफाई के साथ ही राजनीति में निहित वैचारिक गंदगी को भी साफ करने का अभियान सरकार ही नहीं सारी राजनीतिक पार्टियां चलाएं। इससे राजनीतिक गंदगी भी साफ होगी और देश भी स्वच्छ-सुंदर बन कर दुनिया में निखरने लगेगा।
’शकुंतला महेश नेनावा, गिरधर नगर, इंदौर