धरती का स्वर्ग कहलाने वाला कश्मीर एक बार फिर सुलग रहा है। जिहादियों द्वारा 1990 में शुरू की गई आतंकी घटनाएं एक बार फिर जोर पकड़ रही हैं। बीच में लगने लगा था कि घाटी में आतंकवाद को वश में कर लिया गया है। मगर स्थित अब भी गंभीर बनी हुई है। आतंकी चुन-चुन कर लोगों की हत्या कर रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों, बाहरी लोगों और चर्चित लोगों को निशाना बना कर की जा रही हत्याएं जारी हैं। एक समुदाय या वर्ग-विशेष को लक्ष्य बना कर हत्याएं की जा रही हैं।
घाटी में पिछले एक महीने के दौरान लगभग नौ नागरिकों की इसी तरह निर्मम हत्या की जा चुकी है। इनमें महिलाएं और सुरक्षाकर्मी भी शामिल हैं। गत गुरुवार को ही आतंकियों ने कुलगाम जिले में स्थित एक बैंक में घुस कर मैनेजर की हत्या की थी। कुलगाम में यह तीन दिनों में दूसरा हमला था। घाटी में काम कर रहे प्रवासी बिहारी मजदूरों को भी निशाना बनाया जा रहा है।
लगातार बढ़ते आतंकी हमलों के कारण घाटी में डर और दहशत का माहौल बना हुआ है। कई परिवार तो घाटी से पलायन करना शुरू कर चुके हैं और संभवत: पाकिस्तान समर्थित जिहादी/ आतंकी चाहते भी यही हैं।
इधर, बढ़ते हमलों से डर कर प्रधानमंत्री पैकेज के तहत काम कर रहे कश्मीरी पंडित कर्मचारी जम्मू पहुंचने लगे हैं। एक कर्मचारी ने बताया है कि स्थिति लगातार बिगड़ रही है और 1990 जैसे हालात बन रहे हैं। उधर, निकट भविष्य में अमरनाथ यात्रा भी शुरू होने जा रही है। यात्रा से पहले ये आतंकी घटनाएं सुरक्षा एजेंसियों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।
सरकार उच्च स्तरीय बैठकें करती रहे, मगर समय आ गया है कि समूची घाटी को तुरंत प्रभाव से सेना के हवाले कर दिया जाए, ताकि इन आतंकियों, इनके समर्थकों और देश-विरोधी गतिविधियों में संलिप्त तत्वों का सफाया हो। वहां के लोगों में गिरते मनोबल की वापसी हो। एक बार हालात ठीक हो जाएं तो वापस लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था लागू की जा सकती है।
शिबन कृष्ण रैणा, अलवर