हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए परीक्षा पे चर्चा में तकनीक के इस्तेमाल पर विशेष ध्यान देने को कहा। यह कोई छिपी बात नहीं है कि मोबाइल के जरूरत से ज्यादा प्रयोग ने समाज को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। इसीलिए यह एक स्वाभाविक सलाह है कि बच्चे इस तरह की तकनीकी के गुलाम न बनें, उनका सीमित और संतुलित प्रयोग करें।
हम सब जानते हैं कि यह लोगों की व्यक्तिगत या सामाजिक हानि हो सकती है, लेकिन यह कहीं न कहीं राष्ट्र की क्षति भी है, क्योंकि जो समय देश की बड़ी आबादी सोशल मीडिया पर बिता रही है, वह अगर देश को विकसित करने में प्रयोग किया जाए तो यह अपने आप में बड़ा परिवर्तन ला सकता है।
शोध संस्थान रेडसियर के अनुसार हर भारतीय स्मार्टफोन पर औसतन सात घंटे बिताता है। इसमें से भी वह सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताता है। इसके चलते हम अपने सोचने-समझने की क्षमता खोते जा रहे हैं। साथ ही इसका असर हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी विपरीत पड़ता है। इसके अलावा, यह हमारे सामाजिक और पारिवारिक संबंधों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है और हमारे जीवन करिअर में भी बाधाएं उत्पन्न कर रहा है। अवसाद जैसी बीमारियां सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रयोग के कारण लगातार बढ़ती जा रही है।
इसके अलावा, इसने हमें आर्थिक रूप से बेहद प्रभावित किया है। सोशल मीडिया पर तरह-तरह के आकर्षित विज्ञापन होते हैं, जिसके चलते हम फिजूल की चीजों का क्रय कर लेते हैं। फिर इस आभासी दुनिया में जब सब कुछ हमारे मुताबिक नहीं हो पाता है तो फिर हम अपने आप को हीन भावना से ग्रसित कर लेते हैं, जिसके चलते कई बार लोग आत्महत्या तक की स्थिति तक में पहुंच जाते हैं।
इसके अलावा, सोशल मीडिया पर भ्रमित जानकारी भी समाज को दिशाहीन बनाती है। आज सोशल मीडिया से हर व्यक्ति लगभग प्रभावित है, इसलिए इसके प्रयोग पर हमें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
- सौरव बुंदेला, भोपाल</strong>