महाराष्ट्र के घटनाक्रम से स्पष्ट है कि जो दल अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के लिए मूल मुद्दे से भटकता है, उसका पतन होना तय है। बाल ठाकरे ने हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर शिवसेना का गठन किया था, पर उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए विरोधी विचारधारा वाले दल से गठबंधन कर लिया, फिर पुत्र प्रेम भी उभर आया। अब सत्ता और पार्टी दोनों छूटती नजर आ रही है।
शिवसेना का परिवारवाद से बाहर निकल कर संगठन और नेतृत्व अब एकनाथ शिंदे के हाथों में आता नजर आ रहा है, इससे पार्टी कायम रहेगी। एनटी रामाराव से पार्टी का नेतृत्व चंद्रबाबू नायडू ने थाम लिया था, तब पार्टी कायम रही थी। कांग्रेस को भी अब इनसे शिक्षा लेना चाहिए कि परिवारवाद से हट कर अन्य योग्य नेताओं को बागडोर सौंपनी चाहिए, अन्यथा कांग्रेस का पतन तय है।
- अरविंद जैन ‘बीमा’, उज्जैन