सरकारी कर्मचारी तीस-पैंतीस वर्ष नौकरी के दौरान कार्य करता है, तब उसे वेतन मिलता है। वेतन पर आयकर अदा करता है। लेकिन सेवानिवृत्ति के पश्चात जीवन निर्वाह के लिए किसी कर्मचारी को अगर पेंशन मिलती है, जिससे वह अपना जीवन निर्वाह कर सके, तो इसे उसके अधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए, न कि बोझ के तौर पर। अगर कुछ अलग करने की कोशिश हो रही है तो पेंशन को जीवन निर्वाह भत्ता का नाम देना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही जीवन निर्वाह भत्ता को आयकर से मुक्त होना चाहिए।
विधायक-सांसद को पांच वर्ष पद पर रहने के पश्चात आजीवन आयकर से मुक्त पेंशन मिलती है। इस लिहाज से देखें तो जीवन भर नौकरी करने के बाद वरिष्ठ नागरिक को मिलने वाला जीवन निर्वाह भत्ता यानी पेंशन को किसी बाधा से से आजाद रखा जाना चाहिए। वरिष्ठ नागरिकों के प्रति यह सम्मान होगा, जिसका उन्हें अधिकार है।
- अरविंद जैन ‘बीमा’, फ्रीगंज, उज्जैन