दहेज की आग
भारत में हर नब्बे मिनट में दहेज के कारण एक युवती अपनी जान गंवा देती है। कभी उन्हें ससुराल वाले मार देते हैं तो कभी वह खुद आत्महत्या कर लेती है।

जिस तरह मनुष्य ने अपनी आवश्कताओं को पूरा करने के लिए सुलभ साधनों को पृथ्वी की गर्त से निकाला, उसी तरह मनुष्य ने ही मनुष्यों को यातनाएं देने या प्रताड़ित करने के भी कई क्रमबद्ध तरीकों को भी खोज निकाला। गुजरात के अहमदाबाद में एक युवती ने अपनी जान गंवा दी। उसकी शादी के दो साल भी नहीं गुजरे थे, पर उसके ससुराल वालों ने दहेज के लिए उन्हें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। वह तमाम यातनाओं को सहती रही, फिर भी पति से दिल से प्यार करती रही। आखिरकार उसने खुदकुशी कर ली।
निश्चित रूप से उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था, बल्कि उस बेरहम शख्स के खिलाफ डट कर मुकाबला करना चाहिए था। उसके पास एक अच्छा मौका था कि वह खुद को सताने वाले व्यक्ति का दुनिया के सामने पर्दाफाश करती, ताकि ऐसी घटनाएं फिर न हों। हमें ऐसे समाज और इस तरह की मानसिकता वाले लोगों का बहिष्कार करना चाहिए। दहेज प्रथा, बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियां पिछड़े समाजों का चलन है। इक्कीसवीं सदी में भी उन्हें ढोने की जरूरत नहीं।
भारत में हर नब्बे मिनट में दहेज के कारण एक युवती अपनी जान गंवा देती है। कभी उन्हें ससुराल वाले मार देते हैं तो कभी वह खुद आत्महत्या कर लेती है।
इस पर जो भी कानून बने हुए हैं, वे सिर्फ संविधान के पन्नों तक ही सीमित हैं। जरूरत है इस पर कड़ा रुख अपनाने की, ताकि दहेज के कारण मरने वाली कुछ महिलाओं को बचाया जा सके
’सचिन आनंद, खगड़िया, बिहार