वर्तमान मे स्थिति कुछ इस प्रकार हो गई है कि हमने सफलता मात्र को अपने जीवन का हिस्सा मान लिया है और अगर परिणाम इसके विपरीत आ जाता है तो हम हताश और निराश हो जाते हैं, क्योंकि हमने इसकी कल्पना नहीं की थी। हम खुद को इस तरह तैयार कर लेते हैं कि अगर हम कोई कार्य कर रहे हैं तो हम उसमें सफल ही होंगे।
शायद हम यह बात भूल गए हैं कि जीवन के दो पहलू होते हैं- कहीं दुख तो कहीं सुख। ठीक इसी प्रकार कहीं हार तो कहीं जीत। श्रीमद्भगवतगीता में भी वर्णित है कि आप कर्म करिए, फल की चिंता नहीं कीजिए।
आज आवश्यकता हैं कि हम इन बिंदुओं पर गौर करें। अगर हमें खुद को अवसाद, हताशा और निराशा जैसी चीजों से दूर रखना है तो हमें खुद को परिणाम की चिंता से परे रखकर अपना पूरा ध्यान कर्म पर केंद्रित करना होगा और आगामी परिणाम की किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहकर उसे सहर्ष स्वीकार करना होगा।
- अभय शंकर पांडेय, दिल्ली विवि