हमारे देश की एक कंपनी द्वारा बनाई गई खांसी की दवा से उज्बेकिस्तान के कुछ बच्चों की जान जाने की खबर आई। हालांकि इसका कारण यह बताया गया कि यह दवा बिना डाक्टर की सलाह के बच्चों को दी गई थी। कोई भी दवा कंपनी जब कोई दवा बनाती है तो वह कंपनी उस दवा की गुणवत्ता की जांच उचित तरीकों से करती है, लेकिन लोग बिना डाक्टर की सलाह के ही दवा ले लें और उस दवा का दुष्परिणाम हो जाए तो इसमें उस दवा कंपनी का क्या कसूर, जिसने वह दवा तैयार की होती है?
फिर भी इस सवाल की अनदेखी नहीं की जा सकती कि क्या किसी दवा को किसी भी स्थिति में जानलेवा होना चाहिए! अगर कोई दवा बीमारी ठीक नहीं भी करती है तो क्या वह दवा किसी की मौत की वजह बन सकती है? अगर वह जानलेवा साबित होती है तो इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए?
आधुनिक विज्ञान ने अगर इंसान को बड़ी से बड़ी बीमारियों से बचाने के लिए कई तरह की दवाइयां और तकनीक विकसित बेशक दी है, लेकिन छोटी-छोटी बीमारी से निजात दिलाने के लिए जो दवाइयां तैयार की हैं, वो भी सेहत पर दुष्परिणाम डाल सकती है। एंटीबायोटिक के अत्यधिक इस्तेमाल को लोगों की जिंदगी को खतरा भी बताया गया है।
दुनिया के दूसरे देशों में देशी इलाज के साधन नहीं हैं, इसलिए वहां एंटीबायोटिक का अत्यधिक और अनावश्यक प्रयोग होना स्वाभाविक है, लेकिन वे देश भारत से देशी इलाज के गुर लेकर अपने देश के नागरिकों को एंटीबायोटिक के अनावश्यक इस्तेमाल होने वाले खतरों और नुकसान से बचा सकते हैं।
अफसोस इस बात का भी हमारे खुद के देश के नागरिक खुद और अपने छोटे-छोटे बच्चे भी सर्दी, खांसी और जुकाम जैसी छोटी-छोटी बीमारियों से निजात पाने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं पर निर्भर हो जाते हैं। सरकार को इसे गंभीरता से लेते हुए छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज से छुटकारा पाने के लिए एंटीबायोटिक का प्रयोग न करने और अपना डाक्टर खुद न बनने के लिए देश को जागरूक करने के लिए विशेष अभियान चलाने चाहिए।
अक्सर यह भी देखा जाता है कि कुछ लोग अपना डाक्टर स्वयं बनकर ही दवाइयों का सेवन खुद ही करने लग जाते हैं। ऐसा करना खुद के लिए हानिकारक भी सिद्ध हो सकता है, छोटी-छोटी बीमारी या दर्द के लिए घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे अपनाए जा सकते है, क्योंकि इनसे शरीर पर कोई दुष्परिणाम होने के गुंजाइश बहुत कम होती है।
हमारे देश की आबादी का बहुत बडा भाग अशिक्षित है या फिर दवाइयों की असली नकली पहचान करने में असमर्थ है। इसलिए घटिया दवाओं पर नकेल कसने के लिए सरकार और प्रशासन को कारगर कदम प्राथमिक तौर पर उठाने चाहिए, ताकि कोई दवा किसी की सेहत के दुश्मन न बने।
राजेश कुमार चौहान, जलंधर