हमारे देश में करोड़ों लोगों की सुबह राम-राम बोलकर होती है। यहां जितनी इज्जत हिंदी को दी जाती है, उतना ही सम्मान उर्दू को भी दिया जाता है। हर भारतीय आम बोलचाल में हिंदी और उर्दू दोनों ही भाषाओं का इस्तेमाल करता है। आम भारतीय जितना सम्मान रामायण को देता है उतना ही कुरान को भी देता है।
यहां दिवाली भी उसी उत्साह के साथ मनाई जाती है जैसे ईद। इस देश की यही खूबसूरती इसे विश्व के अन्य देशों से अलग करती है, लेकिन हमारे देश में कुछ ऐसे मुंहफट नेता भी हैं जो कभी मोहम्मद पैगंबर के नाम पर तो कभी रामचरितमानस के नाम पर विवाद पैदा करते रहते हैं। जो न कभी रामायण को समझ पाए और न कुरान को, वे बस खबरों में बने रहने के लिए कड़वे बोल बोलते हैं, ताकि उनकी रोजी-रोटी चलती रहे। उनको सिर्फ अपनी राजनीति से मतलब होता है।
उनके बोल का लोगों पर क्या असर हो सकता है, यह सोचने की जहमत वे नहीं उठाते। उनका मकसद सिर्फ लोगों के बीच फूट डालकर अपना मतलब निकालना होता है। लेकिन आज हर भारतीय इन बिगड़े बोल वाले नेताओं को अच्छी तरह से पहचान गया है। आज आम भारतीय ऐसे नेताओं के बहकावे में नहीं आता।
अब ऐसे विवादित बयानों को जनता अनसुना कर देती है। उन नेताओं का भी इससे कोई भला नहीं होता। इसलिए अच्छा यही है कि कड़वे बोल बोलने के बजाय इन नेताओं को कोशिश करनी चाहिए कि समाज एकजुट रहे। इसी में सबका भला है।
- चरनजीत अरोड़ा, दिल्ली</strong>