लेकिन गलत किस्मों के बीज, उर्वरक और दवा की गलत मात्रा और विधि आदि से फसलों को बहुत नुकसान होता है। अनाज खासतौर पर गेहूं में प्रदेश और क्षेत्र के अनुसार बीज और किस्में अनुशंसित की गई हैं और खाद व उर्वरक की मात्रा बुआई के समय गेहूं की फसल में प्रति हेक्टेयर लगभग एक क्विंटल डीएपी का प्रयोग करना चाहिए।
डीएपी की मात्रा पच्चीस किलोग्राम तक खेत की उर्वरक क्षमता के अनुसार बढ़ा भी सकते हैं। बुआाई के बाद प्रथम दो भराई यानी पानी लगाते समय गेहूं की फसल में एक साधारण खेत में लगभग दो बार यूरिया का प्रयोग करना चाहिए। दोनों बार यूरिया की मात्रा भी प्रति हेक्टेयर एक क्विंटल तक होनी चाहिए। यूरिया का प्रयोग पानी लगाने के बाद ही करना चाहिए, जब खेत पैर सहने लायक हो जाए यानी पानी लगाने के एक-दो दिन बाद।
इसके अलावा, बीमारियों से फसल को बचाने के लिए वर्ष में एक बार दस किलो जिंक सल्फेट भी अनुमोदित है! सूखे और कम वर्षा वाले क्षेत्रों को छोड़ कर सल्फर खाद को किसी अनाज फसलों में अनुमोदित नहीं गया है, क्योंकि आमतौर पर वर्षा से ही सल्फर की कमी पूरी हो जाती है! किन्हीं खास परिस्थितियों में धूप कम निकलने, ज्यादा सर्दी के मौसम मे पाला पड़ने, जल भराव आदि के दुष्प्रभाव से फसल के पीले पत्ते और कम बढ़वार होना आदि को दूर करने के लिए मात्र दो-तीन फीसद यूरिया व पोटाश आदि के छिड़काव भी अनुशंसित किया गया है! लेकिन किसान साथी कई बार उत्साह में खाद, पोषक तत्त्वों और दवाओं की गलत मात्रा और विधि से छिड़काव से फसलों के पत्ते जलना, पीले पड़ना आदि नुकसान कर लेते हैं! इस नुकसान की कुछ पूर्ति सिंचाई देने से बाद में हो जाती है!
फसलों में उर्वरक खाद-बीज आदि के मामले में अज्ञानता केवल किसानों तक सीमित नहीं, बल्कि सरकार भी बेकार उर्वरक नैनो यूरिया आदि जबरदस्ती बेचकर किसानों का शोषण कर रही है! जबकि नैनो यूरिया के किसी भी फसल में अभी तक कोई सकारात्मक नतीजे नहीं मिले हैं। इसी कड़ी में सरकार ने कुछ समय पहले बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फायदे के लिए बीटी मक्की जैसे किसान विरोधी बीज और तकनीक के परीक्षण की अनुमति भी दी है! सरकार के ढीले गुणवत्ता नियंत्रण का नाजायज फायदा उठाकर खुले बाजार में व्यापारी भी गैरअनुशंसित नकली बीज, बेकार उर्वरक और दवाएं बेचकर किसानों को लूट रहे हैं।
पिछले वर्ष पंजाब में गैरअनुशंसित नकली बीज-उर्वरक, दवाओं से कपास की फसल में चालीस प्रतिशत से ज्यादा नुकसान हुआ है! इस कारण पंजाब सरकार को मजबूरन आगामी-2023 कपास के मौसम में केवल अनुशंसित किस्मों से उगाई गई कपास फसल का ही बीमा करने का फैसला लेना पड़ा है! राष्ट्रीय हित में सरकार को भी समझना चाहिए कि 140 करोड़ की घनी आबादी वाले भारत की खाद्य सुरक्षा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सहारे सुनिश्चित नहीं की जा सकती है।
इसके लिए सरकार को बीज-खाद, दवाओं आदि कृषि रसायन की गुणवत्ता और दाम को नियंत्रित करना होगा और खेती की तकनीक बारे में कृषि विश्वविद्यालयों, संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा विभिन्न फसलों पर किसान हितैषी ताजा जानकारी प्रादेशिक भाषाओं में आनलाइन उपलब्ध कराकर बीज, खाद, उर्वरक, रासायनिक दवाओं आदि के प्रयोग के बारे किसानों को जागरूक करना चाहिए, जिससे व्यापरियों की लूट के मकड़जाल से किसानों को बचाया जा सके!
विरेंद्र सिंह लाठर, नई दिल्ली।
अव्यवस्था की उड़ान
हवाई यात्राओं में यात्रियों द्वारा निम्नस्तरीय और अशोभनीय व्यवहार के मामले निरंतर सामने आ रहे हैं। पिछले दिनों घरेलू से लेकर अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में भी अनेक ऐसी घटनाएं या प्रसंग प्रकाश में आए हैं, जिनकी अपेक्षा हवाई यात्रा करने वाले संभ्रांत वर्ग से नहीं की जाती। ये घटनाएं अभिजात वर्ग में तेजी से बढ़ रही मानवीय मूल्यों के गिरावट की तरफ इशारा करते हैं।
नियमों के उल्लंघन और अनुशासनहीनता को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है और कठोर प्रतिबंधों के माध्यम से उन पर रोक लगाई जा सकती है, पर मानवीय स्वभाव और मूल्यों में आ रही गिरावट को काबू करना बहुत मुश्किल है। इसके लिए तो वर्तमान जीवन शैली बहुत हद तक जिम्मेदार है। इसके अतिरिक्त उड़ानों में नशीले पदार्थों का सेवन भी एक स्पष्ट कारण है, जिस पर रोक लगना आवश्यक है। ऐसा लगता है कि उड़ान से पूर्व हवाई यात्रियों को दिए जाने वाले नियमित निर्देशों में अब सभ्य, शालीन, सुघड़ और श्लील आचरण के उपदेश और निर्देशों का समावेश करना भी जरूरी हो गया है।
इशरत अली कादरी, खानूगांव, भोपाल।
बजट की दिशा
हाल ही में संसद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023झ्र24 का आम बजट पेश किया। इस बजट में किसानों के लिए क्या है? जो किसान पिछले कई सालों से कर्जे में हैं, उन्हें क्या राहत मिलेगी? मजदूरों को इस बजट से क्या मिला? प्रधानमंत्री अन्न योजना से अस्सी करोड़ लोगों को अन्न देने का वादा कर रहे हैं, लेकिन भुखमरी सूचकांक रपट के अनुसार भारत 142वें स्थान पर है।
इस बजट में सात लाख प्रति वर्ष आय वाले व्यक्ति को कर न के बराबर देना है। एक खबर के अनुसार, भारत के माध्यम वर्ग के लोगों का वार्षिक प्रति व्यक्ति आय कम हुआ है। लेकिन कोरोना के बाद ऐसे कम ही परिवार हैं, जिनकी आय सात लाख रुपए प्रतिवर्ष हो। वहीं इस बजट से युवा काफी आस लगाए बैठा था। लेकिन युवाओं को क्या मिला? वे पढ़-लिख कर भी बेरोजगारी का आलम झेल रहे है।
जनता महंगाई से परेशान है। क्या यह बजट लोगों के लिए राहत साबित होगा? ध्यान रखने की जरूरत है कि यह बजट 2024 में होने वाले चुनाव के अनुकूल तैयार किया गया है, ताकि आने वाले समय में दुबारा फिर से सरकार बनाई जा सके।
सचिन पांडेय, इलाहाबाद विवि।