चौपालः विनाश के हथियार
आर्थिक रूप से दिवालिया हो चुका यह देश वैसे ही घुटनों के बल आ चुका है। अब इस विस्फोट से कैसे उबरेगा? जब विस्फोट का पहली खबर आई तो पहले लगा कि जरूर यह हिज्बुल्लाह गुट का काम है।

हिरोशिमा दिवस छह अगस्त को था, मगर उससे आज तक दुनिया ने सबक नहीं लिया है। लेबनान की राजधानी बेरूत के लोगों ने इस त्रासदी का साक्षात अनुभव दो दिन पूर्व यानी चार अगस्त को किया। वहां के बंदरगाह में छह वर्षों से रखे गए रासायनिक विस्फोटक सामग्रियों के वजह से राजधानी दहल गया। अब तक डेढ़ सौ लोग मारे जा चुके हैं। मगर विस्फोट के वीडियो दृश्य देख कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि मरने वालों संख्या शायद हजारों में पहुंचेगी। पांच हजार लोग जख्मी हुए हैं। विस्फोट का दायरा इतना बड़ा था कि बहुत सारे घर ध्वस्त होने से तीन लाख लोग सड़क पर आ गए।
आर्थिक रूप से दिवालिया हो चुका यह देश वैसे ही घुटनों के बल आ चुका है। अब इस विस्फोट से कैसे उबरेगा? जब विस्फोट का पहली खबर आई तो पहले लगा कि जरूर यह हिज्बुल्लाह गुट का काम है। मगर यह बाद में यह खबर आई कि यह शुद्ध रूप से मानवीय भूल का खामियाजा था। हालांकि अब भी संदेह बना हुआ है।
लेकिन अंदाजा लगाया जा सकता है कि विश्व भर में परमाणु बमों का जो जखीरा पड़ा हुआ अगर उनमें भूल से विस्फोट हो गया तब क्या होगा! पलक झपकते ही धरती पर से पता नहीं, कितने लोगों की जीवनलीला समाप्त हो जाएगी। इसलिए विश्व के नेताओं को चाहिए कि वे इन संहारक जखीरे को नष्ट करने पर विचार करें। इसी पर इंसान की भावी पीढ़ी का धरती पर विचरण करना निर्भर करता है।
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर