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चीन का चेहरा

शीर्ष बैंकर बाओ फैन के पिछले महीने गायब होने से हाल ही में चीन में सनसनी फैल गई।

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प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर। ( फोटो-इंडियन एक्‍सप्रेस)।

एक अग्रणी वैश्विक निवेश बैंकिंग, प्रतिभूति और निवेश प्रबंधन कंपनी ‘गोल्डमैन सच’ ने हाल ही में दावा किया कि सन 2035 तक चीनी अर्थव्यवस्था अमेरिका को पीछे छोड़ देगी। मगर कैसे? इस बारे में कोई जानकारी किसी के पास नहीं है। चीनी अर्थव्यवस्था में जो निजी क्षेत्र की भागीदारी है, उसे वहां की एकतंत्रवादी सरकार हमेशा हतोत्साहित करती आ रही है।

हाल के वर्षों में वहां के कई दिग्गज उद्योगपति और निवेशक आश्चर्यजनक रूप से लापता होते जा रहे हैं। प्रौद्योगिकी उद्योग के सौदागर और शीर्ष बैंकर बाओ फैन के पिछले महीने गायब होने से हाल ही में चीन में सनसनी फैल गई। ऐसा नहीं है कि यह कोई पहला मामला है। अकेले 2015 में कम से कम पांच अधिकारी गायब हो गए, जिनमें समूह फोसुन इंटरनेशनल के अध्यक्ष गुओ गुआंगचांग शामिल हैं।

पश्चिम में इंग्लिश प्रीमियर लीग फुटबाल क्लब वाल्वरहैम्प्टन वांडरर्स के मालिक होने के लिए उन्हें सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है। मार्च 2020 में अरबपति रियल एस्टेट के नामी हस्ती रेन झिकियांग श्रीशी को महामारी से निपटने के लिए ‘विदूषक’ कहने के बाद गायब हो गए। उसी साल बाद एक दिन की सुनवाई के बाद श्री रेन को भ्रष्टाचार के आरोप में अठारह साल की जेल की सजा सुनाई गई।

सबसे जानी-मानी हस्ती के रूप में गायब होने वाले अरबपति अलीबाबा के संस्थापक जैक मा थे। चीन का तत्कालीन सबसे अमीर व्यक्ति देश के वित्तीय नियामकों की आलोचना करने के बाद 2020 के अंत में गायब हो गए। तानाशाही का डंडा अपने ही अरबपतियों पर चला कर चीन कैसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ सकता है?
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर।

स्वच्छता का तकाजा

आमतौर पर हमारी साफ-सफाई अपने घरों तक ही सीमित रहती है। घरों के बाहर की साफ-सफाई पर हम ध्यान नहीं देते है, कई बार गंदगी फैलाने में अपना योगदान देते हैं। परिवारिक और सामाजिक उत्सव के दौरान सड़कों पर कचरे का अंबार लग जाता है। हम अपनी जागरूकता के जरिए कचरे की मात्रा को सीमित कर सकते हैं। सरकार को कचरा प्रबंधन और उससे नई चीज उत्पादन जैसे कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

स्वच्छता के लिए हमें सिर्फ सरकार पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। हमें इसे अपने दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए। महामारी के बाद से खासतौर पर स्वच्छता की अहमियत और बढ़ गई है। गंदगी की वजह से बीमारियों के विषाणु का प्रसार तेजी से बढ़ते हैं। गंदगी खुद भी कई बीमारियों की जनक है। हम स्वच्छता को अपनी संस्कृति में अपनाकर महामारियों के प्रसार पर अंकुश लगा सकते हैं।
हिमांशु शेखर केसपा, गया।

पशुओं से आफत

महानगरों में आवारा पशुओं की समस्या बड़ी बनती जा रही है। देश का शायद ही कोई नगर निगम क्षेत्र हो, जहां आवारा पशुओं की आवाजाही के कारण यातायात बाधित होता है, बल्कि किसी की जान पर भी आ पड़ती है। ऐसी तमाम घटनाएं आती रहती हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि नगर निगम तभी सक्रिय होती है जब कोई बड़ी दुर्घटना हो जाती है या किसी की जान चली जाए।

नगर निगम के अधिकारियों की यह जिम्मेदारी है कि समय-समय पर आवारा पशुओं को बाजार और सड़क से हटाया जाए। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो संबंधित अधिकारियों पर जरूर कार्रवाई होनी चाहिए। किसान भी छुट्टा पशुओं के कारण बेहद परेशान हैं, जिससे खाद्यान्न का भी नुकसान होता है। आवारा पशुओं की वजह से बाजारों में अफरातफरी का माहौल बन जाता है। इसे रोकने की जिम्मेदारी राज्य सरकार और नगर निगम की है।
वीरेंद्र कुमार जाटव, देवली, दिल्ली।

दिवस की हद

समाज अपने जिस पहलू में कमजोर होता है या आशंका रहती है कमजोर होने की, तब उसके महत्त्व को रेखांकित करने के लिए दिवस मनाए जाते हैं। जैसे महिला, हिंदी, शिक्षक दिवस या किसी रोग-व्याधि आदि के बारे में जागरूकता लाने के लिए भी दिवस मनाए जाते हैं। विलुप्त वनस्पतियों, जीव-जंतुओं, प्राणियों के संरक्षण के लिए भी दिवस मनाए जाने की परंपरा की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन अब सामाजिक संरचना में बदलाव हो रहे हैं। आधुनिकता के वशीभूत लोगों के संबंधों में भी बदलाव हो रहा है। इसके विभिन्न रूप सामने आ रहे हैं। इस मामले में समाज अभी संक्रमण के दौर से गुजर रहा है।

संक्रमण काल हमेशा बुरा ही होता है, ऐसी बात नहीं है। यह कभी अच्छे की शुरुआत का संकेत भी है। लेकिन सदैव ऐसा होता है, ऐसी भी बात नहीं है। कभी अच्छे से बुरे में प्रवेश करने का जो कालखंड होता है, उसकी मध्यावधि संक्रमण काल होती है। संक्रमण की अवधि अक्सर छोटी होती है। संवेदना को जगाने और स्वस्थ करने से हम वस्तुस्थिति को भांपने में कामयाब होंगे। फिर हमें दिवस मनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। यानी दिवस मनाना कई बार नकली फिक्रमंद होने के समान है।
मुकेश कुमार मनन, पटना।

सब एक जैसे

भारत में पूंजी आधारित जो चुनाव तंत्र विकसित हुआ है और अपराध आधारित जो पूंजी तंत्र खड़ा हुआ है, उसमें कोई भी दल अपनी सफेद चादर के साथ रहने का दावा नहीं कर सकता। किसी को भी पकड़ कर उसके खिलाफ कुछ मामले आसानी से बनाए जा सकते हैं। विपक्षी दल यह मजाक करते हैं कि भाजपा के सारे नेता दूध से धुले हैं या फिर यह वह वाशिंग मशीन है, जिसमें जाते ही सबके गुनाह धुल जाते हैं। लेकिन ये बातें हंसी में उड़ा दी जाती हैं।

आम आदमी पार्टी को देखा जाए तो उनकी चुनावी कामयाबियां वाकई हैरान करने वाली हैं। दो राज्यों में उनकी सरकार चल रही है। लेकिन आम आदमी पार्टी किन मुद्दों की राजनीति कर रही है? वह भी भ्रष्टाचार को लेकर आम भारतीय समाज में जो पाखंडपूर्ण भर्त्सना का रवैया है, उसका ही फायदा उठा रही है। वह भी भावनात्मक मुद्दों का दोहन कर रही है, तीर्थयात्राओं और बड़े-बड़े आरोपों के खेल की राजनीति कर रही है। इस तरह वह भी भारतीय समाज की हताशाओं को अपने पक्ष में मोड़ रही है। इसलिए कभी वह कांग्रेस की बी-टीम जान पड़ती है और कभी भाजपा की।
हेमंत कुमार, भागलपुर, बिहार।

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First published on: 27-03-2023 at 06:05 IST
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