सबके अपने हित होते हैं। उसके अनुरूप वे बजट से उम्मीदें पालते हैं। मगर वित्तीय प्रबंधन का कौशल इसी में माना जाता है कि बजट अधिकतम सबकी उम्मीदों पर खरा उतरे। मगर अक्सर ऐसा हो नहीं पाता है, क्योंकि सरकार को भविष्योउन्मुख होना पड़ता है। उसकी मजबूरी आर्थिक विषमताओं को पाटने की भी होती है। अनेक आर्थिक आकलन, विश्लेषण इसकी गवाही दे रहे हैं कि विषमता एक बड़ी समस्या है। कमजोर तबके को लोगों की मूलभूत जरूरतें रोटी, कपड़ा और मकान सस्ते दरों पर उपलब्ध होती रहें ताकि गरीब और गरीब न हो। इसके लिए अमीरों पर करारोपण जरूरी है।
इन सबके बीच बाजार की गतिशीलता भी अहम मुद्दा है। देश के आर्थिक विकास से मध्यवर्ग की संख्या में खासी बढ़ोतरी हुई थी। हालांकि कोरोना काल इनकी संख्या में गिरावट आई। ऐसा आर्थिक आकलन में बताया जा रहा है। इसी मध्यवर्ग में नौकरी पेशे वाले और छोटे कारोबारी भी आते हैं। उनकी मूलभूत जरूरतों के बाद जो पैसे बचते हैं, उससे बाजार गतिशील होता है। बैंकों की कुल जमा पूंजी में बढ़ोतरी की संभावना बढ़ती है।
इससे जरूरतमंदों को कर्ज मुहैया करवाए जाते हैं। लिहाजा, बजट भले एक दिन कुछ घंटों में प्रस्तुत किया जाता है। मगर यह सरकार का संपूर्ण वित्तीय वर्ष में वित्तीय प्रबंधन की झलक है। इसमें उसे विभिन्न वर्गों के बीच संतुलन साधने होते हैं। देखना है, इस बार यह संतुलन सरकार कैसे साधती है, क्योंकि इन दिनों हमारे पड़ोसी मुल्क सहित संपूर्ण विश्व की व्यवस्था या यों कहें कि आर्थिक ढांचा चरमराया हुआ है।
मुकेश कुमार मनन, पटना।
उत्सव के समांतर
गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस या फिर गांधी जयंती। हमेशा देखा जाता है कि इन तीन-चार दिनों में टीवी के हर चैनल पर देशभक्ति की फिल्में दिखाई जाती हैं। रेडियो चलाने पर हमें हर चैनल पर देशभक्ति के गीत सुनाई देते हैं। उस समय कुछ देर के लिए एक आम भारतीय में भी देशभक्ति की भावनाएं जागृत हो जाती हैं। लेकिन उसके बाद वर्ष के बाकी 360 दिनों में देशभक्ति की फिल्में या गीत सुनाई नहीं देते।
कई बार लगता है कि जैसे देशभक्ति भी तारीखों के साथ जागती है और उसके बाद तिरंगे के साथ लिपटकर अलमारी में सो जाती है। अपवाद के तौर पर अगर देश में कहीं भी चुनाव हो रहे हों तो राजनीतिक रैलियों में तिरंगे की ओर देशभक्ति के गीतों की धूम रहती है। राजनीतिक रैलियों में ऐसे नेता भी ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ के नारे लगाते हैं, जिन्होंने कभी भी देश के तरक्की के बारे में ईमानदारी से काम नहीं किया।
देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले लोग किसी विशेष नस्ल, जाति, धर्म, भाषा या लिंग के आधार पर बंटे हुए नहीं थे। लेकिन आज ज्यादातर नेता अपने स्वार्थों की वजह से भारतीय इतिहास को भूल चुके हैं। आजादी के पहले महात्मा गांधी, सरदार पटेल, भगत सिंह जैसे लोगों ने देश को एकजुट रखा लेकिन आज नेताओं ने देश को जातियों, धर्मों, भाषा और प्रांतों के आधार पर बांट दिया है। आज अगर हम हमारे देश में राजनीति के सारे उपद्रवों को शांत करना हो और सही रास्ते पर इस राष्ट्र के भविष्य को ले जाना हो तो व्यक्तिगत स्वार्थ की प्रवृत्ति को रोकना होगा।
एक बच्चे को सिखाना होगा कि ‘मेरा सुख’ जैसी कोई चीज नहीं होती, बल्कि ‘हमारा सुख’ जैसी चीज होती है। सुख और संपन्नता व्यक्तिगत न होकर सामूहिक होती है। आज जरूरत इस देश को फिर से एकजुट करने की है। इसके लिए हर आदमी को कोशिश करनी होगी। हर आदमी को अपना काम ईमानदारी से करना होगा, चाहे वह एक मजदूर हो, किसान हो, व्यापारी हो चाहे डाक्टर हो… बच्चों को पढ़ाने वाला शिक्षक हो सड़कों पर यातायात संभालने वाला जवान हो या फिर चाहे सीमाओं की रक्षा करने वाला सैनिक हो। देशभक्ति के गीत सुनना तभी सार्थक होगा जब हम देश की तरक्की में भी योगदान देंगे।
चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली।
राहत का इंतजार
भारत का इस बार का बजट अंतरराष्ट्रीय आर्थिक चुनौतियों के संकटों के बीच पेश किया जा रहा है! वर्तमान समय में हर अंतरराष्ट्रीय घटना का हर देश पर प्रभाव पड़ता है। इसीलिए भारत भी रूस-यूक्रेन युद्ध और विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के प्रभाव से अछूता नहीं है। आने वाले वक्त में कई राज्यों में चुनाव और 2024 में आम चुनाव के चलते सरकार अधिक से अधिक लोकप्रिय बजट पेश करने की कोशिश करेगी।
जनता महंगाई को लेकर लंबे समय से त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही है। सरकार की बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बावजूद जमीनी स्तर पर अमीरों को छोड़कर बाकी पूरे देश की जनता महंगाई की मार से त्रस्त है। मध्यमवर्गीय परिवार गरीबी की रेखा पर खिसक गए हैं। लोगों के लिए दो जून की रोटी कमाना, संतानों को पढ़ाना इलाज आदि की पुख्ता व्यवस्था करना दुश्वार हो गया है। सभी आशा कर रहे हैं कि उन्हें महंगाई से अधिकतम राहत इस बजट से मिलेगी। वहीं व्यापारी वर्ग टैक्स में छूट का इंतजार कर रहा है। आयकर का दायरा बढ़ाने का सभी करदाता इंतजार कर रहे हैं।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, मप्र।
तकनीक में निवेश
‘तकनीकी विकास और समृद्धि के सोपान’ (लेख, 30 जनवरी) पढ़ा। लेख में एकदम वाजिब विश्लेषण एवं महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को उठाया गया है। यह बात बिल्कुल सच है कि आज हर क्षेत्र में कंप्यूटर का प्रयोग हो रहा है। तकनीक के विकास के साथ-साथ इसका आकार छोटा होता जा रहा है और इसकी क्षमता में बढ़ोतरी हो रही है। भारत को चाहिए कि क्वांटम तकनीक के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा निवेश करे और घरेलू उद्योगों को भी प्रोत्साहित करे। तभी जाकर भारत एक अग्रणी देश के रूप में खुद को विश्व पटल पर स्थापित कर पाएगा।
समराज चौहान, कार्बी आंग्लांग, असम।