यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी से मिथाइल आइसो साइनाइट (मिक) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, जिसका उपयोग कीटनाशक के लिए किया जाता था। जिस टैंक का तापमान चार से पांच डिग्री के बीच रहना चाहिए था, अचानक 200 डिग्री पहुंच गया।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि टैंक को सुरक्षित रखने के लिए प्रयोग किया जाने वाला फ्रीजर संयंत्र बिजली का बिल बचाने के लिए बंद कर दिया गया था। तापमान बढ़ने से जहरीली गैस पाइपलाइन के रास्ते निकल कर फैलने लगी। यह घटना औद्योगिक विकास के रास्ते पर चल रही दुनिया के सामने आज भी एक यक्ष प्रश्न है। अगर सतर्कता न बरती जाए तो इंसान के लिए तमाम तरह की सुख-सुविधाएं देने वाला यह रास्ता कितना खतरनाक हो सकता है, यह सैंतीस साल पहले भोपाल मे देखने को मिल गया। गैस के असर से कितने लोग मरे, कितने बीमार हुए और कितने आज तक उसके दुष्प्रभावों को झेल रहे हैं, इसकी कोई निश्चित संख्या हमारे सामने नहीं है।
बात आती है जिम्मेदारी की। कंपनी अगर सावधानी से काम करती तो आज बात कुछ और होती! भले ही इस दुर्घटना के सैंतीस साल बीत गए हों, लेकिन आज तक पीड़ितों और पीड़ितों के परिजनों को इंसाफ नहीं मिल सका। सरकारें बदल गर्इं, सुनवाई चलती रही, मुआवजे की बात भी हुई, लेकिन दोषियों को आज तक सजा नहीं मिली। देश में उद्योगों को उत्तरदायी बनाने की अपर्याप्त वैधानिक व्यवस्था और सरकारों की लापरवाही के कारण पीड़ितों से न्याय दूर रहा। इस त्रासदी से वातावरण और आसपास के प्राकृतिक संसाधनों पर जो बुरा असर पड़ा, उसे दूर करना भी संभव नहीं हो सका। गैस पीड़ित आज भी अस्पताल और कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं।
चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र हादसा और भोपाल गैस कांड दो ऐसी घटनाएं हैं, जिन्होंने आधुनिक दुनिया मे औद्योगिक सभ्यता के खतरों को उभारा है। ऊंचे मानदंडों का पालन करना, पर्यावरण रक्षा के कानून सख्त बनाने के साथ उन पर अमल की कुशल व्यवस्था रखने से ऐसी दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। इस दर्द को हम भूल नहीं सकते। लेकिन इससे सीख लेकर भविष्य को जरूर सुधारा जा सकता है।
विभुति बुपक्या, आष्टा, मप्र
सशक्त भारत
भारत दिसंबर 2022 से अधिकारिक तौर पर जी 20 समूह का अध्यक्ष बन गया है, जो कि दुनिया का सबसे प्रभावशाली आर्थिक मंच है। यह अब यूरोपीय संघ सहित बीस देशों का प्रतिनिधित्व करेगा जो दुनिया की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या है। यह मौका न केवल भारत, बल्कि अन्य छोटे देशों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है, जिन्हें विश्व के अन्य मंचों पर अपनी बात रखने का भरपूर मौका नहीं मिल पाता। एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के अन्य देश भारत पर अधिक भरोसा करते हैं, क्योंकि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के लिए जाना जाता है।
ऐसे समय में जब एक तरफ रूस-यूक्रेन युद्ध चल रहा है और दूसरी ओर अमेरिका चीन में भी तनाव है। भारत तटस्थ रहकर सभी देशों को एक मेज पर ला सकता है। भारत ने पहले भी कोविड महामारी के दौरान विश्व के अनेक देशों को टीके भेजकर या कठिन समय में युद्ध ग्रस्त क्षेत्रों से अपने और अन्य देशों के नागरिकों को सकुशल निकाल कर अपनी नेतृत्व क्षमता और विश्व बंधुत्व का परिचय दिया है। आज जब दुनिया के दूसरे बड़े मंच जैसे संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन आदि दुनिया में बढ़ते तनाव व आर्थिक मंदी को रोक पाने में विफल हो रहे हैं, उस समय भारत अपनी अर्थव्यवस्था को सफलतापूर्वक संभाले हुए हैं।
भारत ने अपने कार्यकाल का थीम भी ‘वासुदेव कुटुम्बकम’ रखकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि हम दुनिया को एक परिवार मानते हैं। अपनी इन्हीं क्षमताओं व दर्शन से भारत दुनिया में फैली समस्याओं का व अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों का व्यापक हल दे सकता है।
पुनीत अरोड़ा, मेरठ