चौपाल: सिमटता बचपन
बच्चों का बचपन बचाने के लिए उनके लिए खेल का मैदान उपलब्ध कराना होगा। बच्चे ही देश का भविष्य हैं। भविष्य की रक्षा करना उन्हें संवारना हर नागरिक का धर्म है।

बचपन हर किसी के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है और यह हर चिंता या फिक्र से मुक्त होता है। बच्चों के बीच जाति, धर्म और नस्ल की कोई दीवार नहीं होती है। वे उन्मुक्त होकर खेलते रहना चाहते हैं। लेकिन आज बच्चों के खेलने का मैदान विलुप्त होता जा रहा है। आजकल हर जगह निजी स्कूल भरे हुए हैं, मगर शायद ही किसी विद्यालय के पास खेल का मैदान है।
खेलने की जगहों को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है और ऐसी ज्यादातर जगहों पर आज बड़ी-बड़ी इमारतें बन गई हैं। बच्चों का परंपरागत खेल फुटबॉल, लुका-छिपी, कबड़्डी, पतंगबाजी आदि बंद हो गए हैं। आजकल माता-पिता भी यही चाहते हैं कि उनके बच्चे अधिकांश समय शांतिपूर्वक घर में रहें।
यह बेवजह नहीं है कि बच्चों का बचपन आज घर की चारदिवारी के भीतर खेले जाने वाले खेल, टीवी और मोबाइल में सिमटता जा रहा है। इससे बच्चों का शारीरिक विकास अवरुद्ध हो रहा है। बच्चों में अकेले रहने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। वीडियो गेम और टीवी की लत से बच्चों में नकारात्मक भावना बढ़ती है।
हिंसक टीवी गेम देखने के बाद उपजी मन:स्थिति में छोटे बच्चे भी आज स्कूल में अपराध कर बैठते हैं। हमें बच्चों का बचपन बचाने के लिए उनके लिए खेल का मैदान उपलब्ध कराना होगा। बच्चे ही देश का भविष्य हैं। भविष्य की रक्षा करना उन्हें संवारना हर नागरिक का धर्म है।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया, बिहार