हाल ही में देश में दो चिंताजनक घटनाओं ने न केवल देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को चुनौती दी है, बल्कि संविधान के मूल भाव को भी बंधक बनाने की कोशिश की है। पहली घटना दो लोगों की हत्या के आरोपी मोनू मानेसर के समर्थकों द्वारा हरियाणा के तमाम शहरों में सरेआम तलवारबाजी करके धमकियां दिया जाना और दूसरी घटना अमृतसर के संवेदनशील अजनाला थाने पर बड़ी संख्या में स्वघोषित धर्म प्रचारक और भिंडरावाले का तथाकथित उत्तराधिकारी अमृतपाल सिंह के समर्थकों द्वारा हथियारबंद हमला।
यही नहीं, प्रतिगामी चिंतन की उपज अमृतपाल सिंह ने लगे हाथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भी इंदिरा गांधी जैसा अंजाम भुगतने की धमकी तक दे डाली। सवाल है कि हम पंजाब में बार-बार ऐसी घटनाओं को क्यों घटित होने देते हैं? ऐसा क्यों है कि जब पंजाब में कमजोर सत्ता होती है, तब उग्रवाद हावी होने लगता है, राज्य संकट से घिर जाता है? हाल की गिरफ्तारियों में और खुफिया सूचनाओं में यह बात साफ दिख रही है कि ऐसे मामले पाकिस्तानी आइएसआइ और कनाडा के कट्टरपंथियों की भारत विरोधी उपज हैं जो अमृतपाल के बहाने साधने की कोशिश हो रही है।
काबिले-गौर है कि गुरु गोविंद सिंह से लेकर भगत सिंह तक की मुगलों और अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई महज सिर्फ पंजाब को बचाने को लेकर नहीं थी, बल्कि भारत की रक्षा और सुरक्षा के लिए थी। ऐसे में कथित तौर पर भिंडरावाले का उत्तराधिकारी कहे जा रहे अमृतपाल सिंह ने जो मंशा दिखाई है, वह संकीर्णता का परिचायक है और देश की एकता-अखंडता और संप्रभुता पर भी कुठाराघात है।
चाहे कोई भी धर्म हो, धर्म की आंच पर वोटों की रोटियां सेंकना सबसे आसान होता है, लेकिन ऐसी आंच जब आग में बदलती है और दावानल का रूप लेती है, तो सब कुछ खाक होने लगता है। देश की पंजाबी बिरादरी ताकतवर और व्यवसायिक निपुणता में दक्ष है। लेकिन जब देश है, तभी हम हैं। देश और भारत की माटी से ही हमारा और हमारे आने वाली पीढ़ी का अस्तित्व है।
हर्ष वर्द्धन, पटना, बिहार।
फिजूलखर्ची के समारोह
हर साल जब भी शादी-ब्याह का मौसम आता है, लोग को एक दूसरे से कहते सुने जा सकते हैं कि इस साल बहुत शादियां हैं। लोग इन होने वाली शादियों मे अपनी हैसियत से भी ज्यादा खर्च करने लगे हैं। लड़के की शादी हो या लड़की की, लोग दिल खोल कर इनमें खर्च करना चाहते हैं। आज जमाना, पूरी तरह शो-बाजी और दिखावे का हो गया है। इनके चलते विवाह समाराहों मे अनावश्यक और ज्यादा ही फिजूलखर्ची होने लगी है।
बचत किए जाने वाले कामों में अनाप-शनाप और अनावश्यक खर्च लोगों और समाजजनों को दिखाने के लिए किए जाने लगे हैं। एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा और शो-बाजी के चलते विवाह समारोहों में फिजूलखर्ची का यह खेल सभी तबकों में शुरू हो चुका है। कर्ज ले कर विवाह समाराहों मे किए जाने वाले ये फिजूलखर्च ही मां-बाप और परिवारों के लिए विवाहोपरांत परेशानियों के कारण बन रहे हैं।
नरेश कानूनगो, देवास, मप्र।
चुनाव की परिधि
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए जो तीन सदस्यीय समिति बनाने की व्यवस्था दी, उससे एक तरह का कालेजियम बनेगा, जिसमें प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष के साथ सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश होंगे। इस मामले को कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप भी माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में ऐसा ही एक कालेजियम बना चुका है, जिसमें न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
समस्या चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की जितनी है, उससे ज्यादा यह है कि अधिकार दिए जाने और शक्तिशाली बनाने के बाद कैसी स्थिति उत्पन्न होगी। जैसे चुनाव सुधार होने चाहिए वैसे राजनीतिक दल होने नहीं देना चाहते, क्योंकि वे उनके हितों के खिलाफ होते हैं। पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने चुनाव आयोग को उसका खोया हुआ रुतबा वापस लौटाया था और वे नेताओं के नाक में नकेल डाल कर रखते थे।
चुनाव सुधार के लिए सारा श्रेय उन्हें जाता है। भले ही थोड़े सख्त थे, लेकिन उन्होने चुनाव आयोग की जो हैसियत बनाई थी, उसे सदा याद रखा जाएगा।
चंद्र प्रकाश शर्मा, रानी बाग, दिल्ली।
मुश्किल बढ़ाती महंगाई
बढ़ती महंगाई की मार से आमजन विशेषकर निम्न मध्यमवर्गीय परिवार हैरान-परेशान है। रोजमर्रा की चीजों की कीमतें दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। रसोई गैस सिलेंडर से लेकर आटा दाल और सब्जी, सबकी कीमतें निरंतर बेहद महंगी होती जा रही हैं। इस समस्या पर न कोई सोचने वाला है, न आवाज उठाने वाला। सभी सिर्फ परिस्थिति अनुसार अपने शब्दों के मायाजाल में एक दूसरे पर आरोप लगाने का प्रयास कर रहे हैं।
आमजन बेबस और लाचार होकर सब सहन करने पर विवश हो रहा है। उम्मीद थी कि कभी तो सवेरा होगा जो महंगाई पर लगाम लगाएगा, लेकिन हालात और ज्यादा जटिल होते जा रहे हैं। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि पिछले कुछ सालों में बड़ी तादाद में लोगों की नौकरियां छिनने के अलावा अन्य सभी स्तरों पर आम जनता के आय का स्तर काफी नीचे चला गया है और अब उनके लिए जीवनयापन एक चुनौती बनता जा रहा है। ऐसे में महंगाई की मुश्किल ने समस्या को और ज्यादा बढ़ा दिया है।
सज्जाद अहमद कुरेशी, शाजापुर, मप्र।
चौकसी का तकाजा
पाकिस्तान में दिन-प्रतिदिन बिगड़ रहे आर्थिक हालात भारत के लिए कतई खुश होने वाले नहीं हैं, बल्कि भारत को इन हालात में सजग रहने की आवश्यकता है। पाकिस्तान में जिस प्रकार महंगाई बढ़ती जा रही है और बढ़ती बेरोजगारी से वहां के अवांछित तत्त्व भारत में घुसपैठ करने के लिए अधिक उतावले हो सकते हैं।
भारत में रोजगार के आसान अवसर और अपेक्षाकृत सरल जीवनशैली घुसपैठियों को अपनी ओर आकृष्ट कर सकती है। अगर इनकी बाढ़ आ गई तो भारत में कई स्तर पर मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। मध्यपूर्व में आइएस के युद्ध के कारण यूरोप में शरणार्थियों की अवैध घुसपैठ अनेक देशों के लिए आज भी दंश बनी हुई है। इस आशंका को दूर करने के लिए भारत की सीमाओं पर अधिक सैन्य बल तैनात करने की आवश्यकता है।
सतप्रकाश सनोठिया, रोहिणी, दिल्ली।