बाकी तो छोड़ दिया जाए, जो पक्षी हमारे आसपास की जिंदगी हुआ करते थे, वे आज हमसे दूर होते जा रहे हैं। जबकि पक्षियों की प्राकृतिक अहमियत को देखते हुए पक्षियों का ध्यान रखना आवश्यक है। गौरैया का सुबह होने के पहले ही चहकना, बारिश आने के संकेत-धूल में लोटना सुख देता है।
चित्रकारी में तो सबसे पहले बच्चों को चिड़िया (गौरैया) बनाना सिखाया जाता है। गौरैया इंसानों की मित्र रही और एक तरह से घर की सदस्य भी। लेकिन हम गौरैया या फिर अन्य पक्षियों के लिए छांव, पानी, दाना की व्यवस्था नहीं कर पाए। कई किसान अपने खेत के कुछ हिस्सों में ज्वार, बाजरा भी लगा देते हैं। सच यह है कि पक्षियों का खयाल रखने से मन को सुकून मिलता है। दाना-पानी और रहवास की सुविधा मुहैया करने पर गौरैया जैसी चिड़िया फिर से घरों में फुदक सकती है।
यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि पक्षियों में अद्भुत शक्ति होती है। वे भूगर्भीय हलचलों जैसे हादसों से सचेत कर देते हैं। जरूरी नहीं कि उनका साथ हासिल करने या उनका खयाल रखने के लिए उन्हें कैद करके रखा जाए। जब भी भूगर्भीय हलचलों का होना शुरू होता है, उसके पहले पशु-पक्षियों में अजीब-सी संकेत स्वरूप गतिविधियां शुरू हो जाती हैं, जैसे पक्षियों का अकस्मात ज्यादा संख्या में एकत्रित होकर कोलाहल करना, पशुओं के व्यवहार में यकायक परिवर्तन होना आदि। इस तरह के कई संकेत हो सकते हैं। अगर पशु-पक्षियों की कुछ खास हरकतों पर गौर किया जाए और प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से उनकी पहचान की जाए तो निश्चित तौर पर व्यापक जान-माल की क्षति से बचा जा सकता है।
संजय वर्मा ‘दृष्टि’, मनावर, धार, मप्र।
पानी पर हक
भारत और पाकिस्तान का विभाजन धर्म के आधार पर किया गया था, लेकिन आज भी दोनों देशों की नदियां, पर्वत शृंखलाएं, संस्कृति और मौसम में समानता है। इसीलिए नदियों के जल का बंटवारा के लिए वर्ष 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता किया गया। वार्षिक प्रवाह की दृष्टि से सिंधु विश्व की इक्कीसवीं सबसे बड़ी नदी है। तिब्बत में कैलाश पर्वत शृंखला से अवतरित होकर भारत में लेह क्षेत्र से गुजरते हुए लद्दाख सीमा को पार करते हुए जम्मू-कश्मीर में गिलगित के साथ यह पाकिस्तान में प्रवेश करती है। पाकिस्तान से गुजरते हुए सिंधु अफगानिस्तान में प्रवेश करती है। सिंधु की पांच अन्य सहायक नदियां ब्यास, सतलज, रावी, झेलम और चिनाब हैं।
आजादी के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हो चुका है, लेकिन उन विषम परिस्थितियों में भी भारत ने समझौते का सम्मान करते हुए पाकिस्तान को उसके हिस्से की जल की उपलब्धता में कभी रुकावट पैदा नहीं किया। भारत की पनबिजली परियोजनाओं पर पाकिस्तान की आपत्ति के बाद भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान को सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए नोटिस भेजना लाजिमी है।
अगर भारत सरकार सिंधु के जल को पाकिस्तान जाने से रोक देता है, तो पाकिस्तान में भुखमरी हो जाएगी, लेकिन जल को रोकना अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन होगा, जिससे भारत की भी मुश्किलें बढ़ जाएंगी। पाकिस्तान की हरकतों को देखते हुए सिंधु जल संधि में संशोधन अनिवार्य है।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया, बिहार।
एकाधिकार का अर्थ
किसी दूसरे देश ने नहीं, बल्कि खुद अमेरिकी न्याय विभाग और आठ राज्यों ने गूगल पर मुकदमा दायर किया और कंपनी पर आनलाइन विज्ञापन बाजार में अपने प्रभुत्व के साथ प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंचाने और इसे तोड़ने का आह्वान करने का आरोप लगाया। यह कदम किसी बड़ी तकनीकी कंपनी के खिलाफ बाइडेन प्रशासन के पहले ब्लाकबस्टर एंटीट्रस्ट केस को चिह्नित करता है।
मुकदमे में लिखा गया है कि ‘गूगल के प्रतिस्पर्द्धी व्यवहार ने कृत्रिम रूप से उच्च स्तर तक प्रवेश करने में बाधाओं को बढ़ा दिया है, प्रमुख प्रतिस्पर्धियों को विज्ञापन तकनीकी उपकरणों के लिए बाजार छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है, संभावित प्रतिस्पर्धियों को बाजार में शामिल होने से रोक दिया है और इस तकनीकी दिग्गज के कुछ शेष प्रतिस्पर्धियों को हाशिये पर और गलत तरीके से वंचित कर दिया है।’
पूरी दुनिया भर के देशों में कमोबेश इसी तरह के मुकदमे वर्षों से चल रहे हैं। आस्ट्रेलिया, ब्राजील, स्पेन, यूरोपीय यूनियन ने इन पर करोड़ों रुपए का जुर्माना लगाया है। कई देशों को गूगल ने जुर्माने की राशि को भुगतान भी कर दिया है। अब गूगल को उसके प्रमुख विदेशी बाजारों में से एक में एक महत्त्वपूर्ण झटका लगा है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अविश्वास आदेश को रोकने से इनकार कर दिया, जिसके लिए एंड्रायड निर्माता को परिवर्तनों की एक शृंखला बनाने की आवश्यकता होती है जो इसकी वित्तीय व्यवहार्यता को कम कर सकती है। इन सब बातों से यह साबित होता है कि किसी का भी अगर बाजार में एकाधिकार रहता है तो वह मनमानी करने में गुरेज नहीं करता है, जैसे इस समय गूगल कर रहा है। अब समय आ गया है कि इसे लेकर एक सख्त नियमन तय किया जाए।
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर, झारखंड।
बजट से दूर
कोई बजट उन लोगों के लिए भी आना चाहिए, जिनकी मासिक आय 10,000 से 25,000 रुपए तक है। किसी बजट में आटा, दाल, चीनी, दूध, फल-सब्जियों के दाम कम होने का भी जिक्र होना चाहिए। करोड़ों लोग सारी जिंदगी निजी कंपनी में नौकरी करते हैं, सेवानिवृत्ति के दौरान उन्हें कुछ खास नहीं मिलता और न ही कोई पेंशन। क्या सिर्फ आयकर दाता ही देश के नागरिक होते हैं? क्या कम आय वाले लोग देश के नागरिक नहीं होते? दिल्ली में संगठित क्षेत्र माने जाने वाले कुछ संस्थानों में साफ-सफाई का काम करने वाले को मात्र नौ हजार रुपए मासिक मिलते हैं। छुट्टी के पैसे कटते हैं। कभी इस तरह के लोगों का भी बजट में जिक्र होना चाहिए।
करोड़ों बुजुर्ग लोग पैसे के अभाव में तिल-तिल कर जिंदगी जीने को मजबूर हैं, कभी उनके लिए भी कम से कम पांच हजार रुपए मासिक पेंशन की घोषणा होनी चाहिए। काश कभी देश के बजट में दीन-हीन वर्ग को भी थोड़ा ज्यादा स्थान मिल पाता।
चंद्र प्रकाश शर्मा, रानी बाग, दिल्ली।