चौपाल- किसका हित
पुलिस ने लड़कों को तो दौड़ा कर पीटा ही, लड़कियों को भी नहीं बख्शा और उन्हें भी मारा-पीटा। सबसे शर्मनाक बात यह है कि इनमें एक भी महिला पुलिस नहीं थी।

किसका हित
बीएचयू में अपनी सुरक्षा की मांग के साथ धरने पर बैठी छात्राओं पर बल प्रयोग भी हुआ। आधी रात को वाराणसी पुलिस, जिला प्रशासन और बीएचयू प्रशासन ने छात्राओं और छात्रों पर लाठीचार्ज करके छेड़खानी के विरोध को कुचलने की कोशिश की। हालत यह थी कि जब लाठीचार्ज किया गया तो अपनी जान बचाने के लिए लड़के भागने लगे और लड़कियां महिला छात्रावास में भागीं। लेकिन पुलिस ने लड़कों को तो दौड़ा कर पीटा ही, लड़कियों को भी नहीं बख्शा और उन्हें भी मारा-पीटा। सबसे शर्मनाक बात यह है कि इनमें एक भी महिला पुलिस नहीं थी। इससे पहले छेड़खानी का विरोध कर रही छात्राओं के प्रदर्शन को तोड़ने के लिए तमाम अफवाहें फैलाई गर्इं। कभी कहा गया कि प्रदर्शनकारी लड़कियां वामपंथी हैं, तो कभी कहा गया कि घटना सुनियोजित है और इसके पीछे सपा या कांग्रेस का हाथ है। इस प्रदर्शन को छेड़खानी और सुरक्षा के मामले से हटा कर बाकी सभी तरह के मुद्दे से जोड़ने की कोशिश की गई। यह आरोप लगाया गया कि इस विरोध के पीछे मंशा सिर्फ बीएचयू, सरकार और मोदी का विरोध है।
इन सबके बावजूद जब आंदोलन नहीं टूटा तो प्रदर्शन स्थल पर पता नहीं किसने गुंडे भेजे, जिन्होंने पुलिस के सामने ही लड़कियों को बुरी तरह गालियां और धमकियां दीं। मगर प्रदर्शन कर रही लड़कियों ने उनका ऐसा विरोध किया कि वे वहां से भागने पर मजबूर हो गए। इतना करने पर भी जब लड़कियों का हौसला कम नहीं हुआ और आंदोलन और मजबूत होता गया तो एक और शर्मनाक अफवाह फैलाई गई। कहा गया कि महामना की प्रतिमा पर प्रदर्शनकारियों ने कालिख पोत दी है। वह झूठ निकला और आंदोलन में लोगों का साथ बढ़ता गया। इन सबके बावजूद आंदोलन कर रहे लड़के और लड़कियों को रात में मारने-पीटने की घटना को अंजाम दिया गया। यह सब करके भी छात्राओं के आंदोलनको नहीं तोड़ा जा सका तो फिर आधी रात को कई जगहों की बिजली काट दी गई, परिसर में अंधेरा कर दिया गया और घने अंधेरे में छात्र-छात्राओं के ऊपर लाठीचार्ज किया गया।
हंगामा इतना बढ़ गया था कि तत्काल शीर्ष स्तर पर हस्तक्षेप जरूरी था। लेकिन न तो वीसी ने लड़कियों से मिलना जरूरी समझा, न उनकी बात सुनी गई, न ही उनकी सुरक्षा को लेकर कोई इंतजाम किया गया। इस प्रकरण ने बीएचयू प्रशासन के साथ-साथ भारत सरकार को भी यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि क्या यह परिसर एक जिद्दी वीसी की जिद भर है?देश के केंद्रीय कॉलेज में यह स्थिति आने वाले समय के लिए खतरे की घंटी है। यह ऐसा कॉलेज है, जहां से देश का भविष्य तय किया जाता है। अगर ऐसा ही होता रहा तो यकीन मानिए आगे हमारे आपके सपनों का भारत तो हो सकता है, लेकिन वह महिला सुरक्षा का भारत नहीं होगा। जहां महिलाएं किसी खौफ में अपनी जिंदगी जिएं, वह कैसी जगह होगी!
’रिजवाना तबस्सुम, वाराणसी
बच्चों के प्रति
माता-पिता बनना हमारे जीवन का सबसे पुरस्कृत और परिपूर्ण कर देने वाला अनुभव है। लेकिन यह आसान नहीं है। आपके बच्चों की उम्र चाहे कितनी भी हो, आपका दायित्व कभी खत्म नहीं होता। अच्छे माता-पिता बनने के लिए आपको इस कला में माहिर होना पड़ेगा कि कैसे अपने बच्चों को सही और गलत के बीच के अंतर की शिक्षा देते हुए आप उन्हें प्यार महसूस करा सकते हैं। हम अपने बच्चों को ऐसा सकारात्मक वातावरण प्रदान करें, जिससे उन्हें यह लगे कि वे एक स्वतंत्र, कामयाब, आत्मविश्वासी और वत्सल इंसान में विकसित हो सकते हैं।
यह तो सभी जानते हैं कि आज के इस सामाजिक परिवेश में बच्चों के व्यक्तित्व का विकास कितना आवश्यक है। अगर हम अपने बच्चों के अंदर दबी हुई प्रतिभाओं को नहीं निखारेंगे या उनके विकास में सहयोगी नहीं बनेंगे तो न हम उनका भविष्य बना पाएंगे और न देश के उज्ज्वल भविष्य में सहायक होंगे। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने बच्चों के भीतर प्रतिभा और इंसानी संवेदनाओं के विकास को प्राथमिक मानें। उसके भीतर नफरत और अहंकार के बजाय प्यार के भाव जड़ जमाएं। हमारी आवाज सत्ता की आवाज नहीं हो। बच्चों से हम कुछ कहें तो आवाज में सत्ता का भाव नहीं होना चाहिए। हमें उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाते हुए परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति उनके दायित्वों के प्रति भी जागरूक करना होगा।
’अमित कुमार झा, दिल्ली
खौफ का तंत्र
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्राओं के प्रति हुए व्यवहार से उपजे दुख को बयान करना आसान नहीं है। कहां गई वह सरकार जो कहती थी कि गलत हरकत करने वाले पर बुलडोजर चला देंगे। जिन छात्राओं ने छेड़छाड़ का विरोध किया और उस सवाल पर आंदोलन किया, आज उन्हीं छात्राओं पर एफआइआर हो रहे हैं। जो सरकार लड़कियों को यौन हिंसा और छेड़छाड़ से बचाने के लिए एंटी रोमियो स्क्वॉड का शोर मचा रही थी, वह स्क्वॉड अब कहीं नहीं दिख रहा है। उस शोर के कुछ महीने के भीतर बनारस की बेटियों से छेड़छाड़ हुआ और उसका विरोध करने पर उन पर लाठी चार्ज किया गया। जबकि बीएचयू की छात्राओं का आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण था।
अगर इंसाफ के लिए आवाज उठाने के एवज उन पर लाठी चार्ज जरूरी समझा गया तो ऐसी सरकार और प्रशासन को खुद को लोकतांत्रिक कहने का कोई अधिकार नहीं है। यह तो किसी अपराध के खौफ से भी ज्यादा भयानक है। यही वे लोग हैं जो वोट हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। इंसाफ का हक मांगती लड़कियों पर लाठी चार्ज शायद इसकी झलक है। जरूरत इस बात की है कि इस सारे प्रकरण के असली दोषियों को सामने लाया जाए और सजा दिलाई जाए। बीएचयूमें आंदोलन कर रही तमाम लड़कियों की बहादुरी देश भर की सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरक शक्ति का काम करेगा।
’किरण मौर्य, दिल्ली