कलाम को सलाम
यकीन नहीं होता कि डॉ एपीजे अब्दुल कलाम नहीं रहे। उनके निधन का समाचार सुनते ही देश स्तब्ध रह गया। विश्वास नहीं हुआ कि हर समय मुुस्कुराता हुआ, सक्रिय रहने वाला और राष्ट्रहित की बात सोचने वाला व्यक्ति चिरनिंद्रा में लीन हो गया है।
यकीन नहीं होता कि डॉ एपीजे अब्दुल कलाम नहीं रहे। उनके निधन का समाचार सुनते ही देश स्तब्ध रह गया। विश्वास नहीं हुआ कि हर समय मुुस्कुराता हुआ, सक्रिय रहने वाला और राष्ट्रहित की बात सोचने वाला व्यक्ति चिरनिंद्रा में लीन हो गया है। डॉ राजेंद्र प्रसाद के बाद वे दूसरे ‘जनराष्ट्रपति’ थे जिनसे राष्ट्रपति पद गौरवान्वित हुआ था। अहंकार उन्हें छू तक नहीं गया था। राष्ट्रपति पद पर विराजमान होकर भी वे खुद को सर्वप्रथम शिक्षक मानते रहे। श्रेष्ठतम वैज्ञानिकों में होते हुए भी उन्हें ज्ञान का दंभ कभी नहीं हुआ। आदर्श शिक्षक की भांति ज्ञान का अधिक से अधिक वितरण उनका मूल स्वभाव था।
सादगी अब्दुल कलाम की एक और बहुत बड़ी खासियत थी। राष्ट्रपति पद पर पहुंच कर या उस पद से हटने के बाद उनमें रंचमात्र अंतर नहीं आया। वे बहुत अधिक लोकप्रिय थे। यह लोकप्रियता उनके ज्ञानमय व्यक्तित्व की थी। यही कारण है कि राष्ट्रपति पद से हटने के बाद उनकी लोकप्रियता में और अधिक वृद्धि हुई।
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एक बार लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री का कार्यक्रम था, जिसके अगले दिन डॉ अब्दुल कलाम का। उस समय वे राष्ट्रपति नहीं थे। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में औपचारिक रूप से आमंत्रित जनसमुदाय मौजूद था। लेकिन दूसरे दिन डॉ अब्दुल कलाम के कार्यक्रम में जैसे लखनऊ उमड़ पड़ा। सारा सभागार खचाखच भरा हुआ था और बाहर भी भारी जनसमूह एकत्र था। देश के किसी भी हिस्से में अब्दुल कलाम का कार्यक्रम हो, उन्हें सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते थे।
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वैसे तो अब्दुल कलाम जन-जन में लोकप्रिय थे पर युवाओं और बच्चों में उनकी लोकप्रियता बेजोड़ थी। बच्चों में उनकी लोकप्रियता कृत्रिम या थोपी हुई न होकर वास्तविक और स्वाभाविक थी। बच्चे उन्हें अपने बीच पाकर चहक उठते थे।
डॉ अब्दुल कलाम सच्चे राष्ट्रवादी थे।
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उन्हें अपने देश से बेपनाह मुहब्बत थी। उन्हें भारत की संस्कृति पर गर्व था। इसी से उन्हें एक बार ‘दारा शिकोह का अवतार’ कहा गया था। दारा शिकोह की विचारधारा वाले डॉ अब्दुल कलाम का चले जाना देश के लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी स्मृति को शत-शत सलाम।
श्याम कुमार, उदयगंज, लखनऊ
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