कथक सम्राट व पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज का अनंत में विलीन होना कला जगत के एक युग का अवसान है। उनके जाने से भारतीय संगीत की लय थम गई। सुर मौन व भाव शून्य हो गए। देश की सांस्कृतिक धरोहर कथक नृत्य की सुगंध को विश्व पटल पर बिखेरने वाले पंडित बिरजू महाराज के लिए संपूर्ण प्रकृति ही संगीतमय थी। उनके लिए जीवन का हर रंग एवं उसका हर भाव ही नृत्य से सराबोर था।
इन्होंने कथक नृत्य में नए आयाम नृत्य-नाटिकाओं को जोड़कर उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। कथक के लिए कलाश्रम की स्थापना का श्रेय भी इन्हें जाता है। बिरजू महाराज कोरियोग्राफर, गायक और संगीतकार भी थे। बेहतरीन तबला बजाने का हुनर भी उन्हें हासिल था। उनके तमाम शागिर्द जाने-माने कलाकार हैं। उन्हें 2012 में ‘विश्वरूपम’ तथा 2016 में हिंदी फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में ‘मोहे रंग दो लाल’ गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से भी नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें भरत मुनि सम्मान, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कालिदास सम्मान व लता मंगेशकर पुरस्कार भी मिल चुका है। कथक नृत्य के पर्याय रहे बिरजू महाराज को उनकी चिर यात्रा पर शत-शत नमन!
- नीरज मानिकटाहला, यमुनानगर, हरियाणा।
फैसले का मैदान
एक समय था जब ज्यादातर टेस्ट मैच ड्रा हो जाया करते थे, मगर अब तो न सिर्फ टेस्ट मैच के फैसले हो रहे हैं, बल्कि वे रोमांचक भी हो रहे हैं। ऐशेज में चार टेस्ट के फैसले आए। चौथा टेस्ट रोमांचक होकर आखिरी ओवर में जाकर ड्रा हुआ। बांग्लादेश न्यूजीलैंड में दोनों टेस्ट का फैसला हुआ और भारत-अफ्रीका के साथ हुए टेस्ट मैच तो काफी अच्छे व परिणाम वाले रहे। अब तो टेस्ट पांच दिन तक भी नहीं चलते और पहले ही हार-जीत हो जाती है। निश्चित ही ऐसे मैचों से टेस्ट मैच अपनी प्रतिष्ठा बचाए रखेगा और खेल भावना का विस्तार होगा।
- साजिद अली, इंदौर, मप्र