महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की हत्या में नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) ने जिस स्टडबेकर (Studebaker) कार का इस्तेमाल किया था, वह किलर कार (Killer Car) के नाम से कुख्यात विंटेज कार (Vintage Car) बन गई है। अपने जमाने की प्रसिद्ध लग्जरी कार निर्माता कंपनी स्टडबेकर ने इस कार को विशेष ऑर्डर पर बनाया था। जौनपुर के तत्कालीन महाराजा यादवेंद्र दत्त दूबे के ऑर्डर पर अमेरिकी कंपनी स्टडबेकर ने इस कस्टमाइज्ड कार को इंडियाना स्थित प्लांट में तैयार किया था।
1930 में भारत आई थी Killer Car
यूएसएफ 73 रजिस्ट्रेशन वाली यह कार भारत 1930 में लाई गई। जौनपुर के महाराजा यादवेंद्र दत्त दूबे और नाथूराम गोडसे के संगठनात्मक संबंध थे। 30 जनवरी 1948 को बिड़ला हाउस पहुंचने के लिए गोडसे ने इसी कार का इस्तेमाल किया। गोडसे का इरादा हत्या के बाद इसी कार से भाग निकलने का था, लेकिन वहां मौजूद भीड़ ने उसे चारों ओर से घेर लिया और पकड़ लिया।
गांधी की हत्या के बाद दिल्ली पुलिस ने कर लिया था जब्त
घटना के बाद बिड़ला हाउस पहुंची दिल्ली पुलिस ने गोडसे को गिरफ्तार कर लिया। हत्या में इस्तेमाल हुई स्टडबेकर कार दिल्ली पुलिस के द्वारा जब्त कर ली गई। सालों तक यह कार दिल्ली पुलिस के पास पड़ी रही। साल 1978 में अंतत: दिल्ली पुलिस ने अन्य विंटेज कारों के साथ स्टडबेकर को भी नीलाम कर दिया। तब कलकत्ता के कारोबारी सन्नी कैलिंग ने यह कार 3,500 रुपये में खरीद ली।
बनारस के राजा के पास भी रह चुकी है Killer Car
कार की यात्रा कलकत्ता से वापस उत्तर प्रदेश की हो गई, जब बनारस के तत्कालीन राजा विभूति नारायण सिंह ने इसको खरीद लिया। विभूति नारायण सिंह इस कार को अधिक इस्तेमाल नहीं कर पाए। स्टडबेकर की यह जबरदस्त कार उनके मालखाने में कई साल पड़ी रही।
लखनऊ के एक कारोबारी ने दिया Killer Car का नाम
राजा बनारस के मालखाने में इस कार को देख लखनऊ के कारोबारी कमाल खान ने खरीदने की इच्छा व्यक्त की। कमाल खान कार गराज के मालिक थे। उन्हें यह कार राजा बनारस ने दे दी। कमाल खान ने कार की मरम्मत की और इसे फिर से दौड़ने लायक बना दिया। उन्होंने ही इसे किलर कार का नाम दिया। आज भी इस कार के रजिस्ट्रेशन प्लेट के ऊपर बोल्ड में किलर लिखा हुआ है।
20 साल से दिल्ली में है Killer Car
कमाल खान के निधन के बाद यह कार उनके एक रिश्तेदार के पास बरेली पहुंच गई। बाद में दिल्ली के लक्ष्मीनगर में गराज चलाने वाले परवेज सिद्दीकी ने यह कार खरीद ली। इसके बाद 2000 से यह कार दिल्ली में ही है। परवेज सिद्दीकी विंटेज कारों का शौक रखते थे और विंटेज कार रैलियों में हिस्सा लेते थे। उन्होंने इस कार को नया रूप दिया और इसे चलाकर कई विंटेज कार रैलियों में पुरस्कार जीते।
आखिरी बार यह कार फरवरी 2018 में द स्टेट्समैन विंटेज कार रैली में देखी गई थी। विंटेज कार रैलियों का आयोजन करने वाले 21 गन सैल्यूट हेरिटेज एंड कल्चरल ट्रस्ट के चेयरमैन मदन मोहन ने फोन पर बताया कि इधर कुछ साल से यह कार रैलियों में नहीं आई है। उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले इस कार के मालिक परवेज सिद्दीकी की असामायिक मौत हो गई। वह इस कार को रैलियों में लाते थे और इसे किलर कार के नाम से बुलाते थे।
कई बार जनता के गुस्से का शिकार हो चुकी है Killer Car
मदन मोहन ने हालांकि यह भी कहा कि वास्तव में इस कार का इस्तेमाल गांधी की हत्या में हुआ था, यह पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है। लेकिन परवेज इसे किलर कार ही बुलाते थे। विंटेज कार रैलियों में इस किलर कार का अलग ही आकर्षण रहता था।
बहरहाल, परवेज सिद्दीकी के गुजरने के बाद एक बार फिर से यह कार गराज में खड़ी रहने को मजबूर है। गांधी की हत्या से जुड़े होने का धब्बा भी शायद एक कारण हो। कई रैलियों में पुरस्कार जीत चुकी यह कार इस कनेक्शन के चलते कई बार पत्थर भी खा चुकी है।
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