टेलिकॉम सेक्टर में रिलायंस जियो के सस्ते डाटा और कॉलिंग प्लान्स के जरिए तहलका मचाने वाले मुकेश अंबानी अब ऑनलाइन रिटेल सेक्टर में भी ऐसी ही तैयारी कर रहे हैं। चार साल पहले टेलिकॉम सेक्टर में अपनाई रणनीति को वह ई-कॉमर्स सेक्टर में भी लागू करने की तैयारी में हैं। तब उन्होंने कीमतों में बड़ी कमी करते हुए प्रतिस्पर्धी कंपनियों के लिए मार्केट में बने रहना मुश्किल कर दिया था। इसकी शुरुआत मुकेश अंबानी ने दिवाली सेल से कर दी है। लंबे समय से भारत के ई-कॉमर्स मार्केट में जमीं अमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों के मुकाबले जियो मार्ट ने भी बड़े पैमाने पर डिस्काउंट ऑफर पेश किए हैं।
रिलायंस इंडस्ट्रीज की ओर से कनफेक्शनरी आइटम्स की सेल 50 पर्सेंट तक की छूट पर की जा रही है। इसके अलावा रिलाय़ंस डिजिटल की वेबसाइट पर फोन भी काफी कम रेट में बेचे जा रहे है। सैमसंग के स्मार्टफोन रिलायंस डिजिटल पर प्रतिस्पर्धी वेबसाइट्स के मुकाबले 40 फीसदी छूट पर हासिल किए जा सकते हैं। रिलायंस इंजस्ट्रीज के लिए रिटेल सेक्टर में कम कीमतों पर कारोबार करना फिलहाल चुनौतीपूर्ण नहीं है क्योंकि उसे बड़े पैमाने पर फंडिंग भी हासिल हो रही है। टेलिकॉम यूनिट रिलायंस जियो में करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये का इन्वेस्टमेंट हासिल करने के बाद अब मुकेश अंबानी रिलायंस रिटेल में निवेश ला रहे हैँ।
अब तक केकेआर, सिल्वर लेक जैसी कंपनियों से मुकेश अंबानी रिलायंस रिटेल के लिए 6 अरब डॉलर तक का निवेश हासिल कर चुके हैं। विश्लेषकों के मुताबिक आने वाले सालों में भारत के ई-कॉमर्स मार्केट में तेजी से इजाफा होगा। ऐसे में रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए इस सेक्टर में पैर जमाने का यह सुनहरा मौका है। मॉर्गन स्टैनली के अनुमान के मुताबिक 2026 तक भारत में ई-कॉमर्स सेल 200 अरब डॉलर के पार पहुंच सकती है। हालांकि टेलिकॉम सेक्टर के मुकाबले रिलायंस के लिए यहां थोड़ी मुश्किल होगी क्योंकि उसका मुकाबला कैश रिच अमेरिकी कंपनियों अमेजॉन और वॉलमार्ट से सीधे तौर पर है।
यूं अमेजॉन और फ्लिपकार्ट को मात दे सकते हैं अंबानी: रिटेल सेक्टर में जगह बनाने में मुकेश अंबानी को सरकारी नीतियों के चलते बड़ी बढ़त मिल सकती है। दरअसल 2018 के बाद से सरकार ने विदेशी निवेश को लेकर नियमों में बदलाव किया है। इसके चलते अमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां एक्सक्लूसिव प्रोडक्ट्स पेश नहीं कर सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय कंपनियां कीमतों को ज्यादा प्रभावित न करें इसके लिए यह नियम बनाया गया है कि वे स्थानीय सुपरमार्केट चेन्स में 51 पर्सेंट से ज्यादा की हिस्सेदारी नहीं रख सकती हैं। यही नहीं इसे लेकर भी कई तरह की शर्तें लागू होती हैं।