देश के दिग्गज कुकर ब्रांड हॉकिन्स के नेट प्रॉफिट में जून तिमाही में 52.85 पर्सेंट की कमी आई है। साफ है कि कोरोना काल में आई आर्थिक गिरावट का असर हॉकिन्स कुकर पर भी देखने को मिला है। अप्रैल से जून तिमाही में कंपनी को 6.45 करोड़ रुपये का नेट प्रॉफिट हुआ है, जबकि बीते साल की इसी अवधि में 13.68 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। यही नहीं बीते साल की तुलना में सेल में भी 29.06 पर्सेंट की गिरावट देखने को मिली है। जून तिमाही में 100.80 करोड़ रुपये के कुकरों की बिक्री हुई है, जबकि बीते साल इसी अवधि में 142.10 करोड़ रुपये की बिक्री हुई थी। आइए जानते हैं, कैसे हॉकिन्स कुकर की हुई थी शुरुआत…
कारोबारी एच.डी वासुदेवा ने 1959 में हॉकिन्स कुकर लिमिटेड की स्थापना की थी। यह वह दौर था, जब देश में बड़ी आबादी पारंपरिक तरीके से ही खाना बनाती थी और कुकर जैसे आधुनिक उपकरण से लोग दूर थे। उस वक्त 54 वर्ष के रहे वासुदेवा ने 20,000 रुपये की लागत से कंपनी की स्थापना की थी। इसके लिए उन्हें इंग्लैंड के एल.जी. हॉकिन्स से तकनीकी सहयोग लिया था। शायद यही वजह है कि उन्होंने कंपनी और कुकर का नाम हॉकिन्स ही रख दिया। तब से अब तक हॉकिन्स कुकर भारत के हर घर में एक जाना पहचाना नाम है और एक बड़ा ब्रांड है। भारत समेत दुनिया भर के कई देशों में कारोबार करने वाली हॉकिन्स कंपनी के संस्थापक एच.डी वासुदेवा का 1993 में निधन हो गया था। हालांकि इससे पहले ही उन्होंने 1984 में रिटायरमेंट लेते हुए अपने बेटे ब्रह्म वासुदेवा को कमान सौंप दी थी।
लगातार 38 सालों तक एमडी के तौर पर हॉकिन्स का कामकाज संभालने वाले ब्रह्म वासुदेवा ने 25 अप्रैल, 2006 को अपने 70वें जन्मदिन के मौके पर रिटायरमेंट लेते हुए सुभदीप दत्ता चौधरी को कंपनी के सीईओ के तौर पर जिम्मेदारी दी थी। फिलहाल हॉकिन्स कुकर का कारोबार दुनिया के कई देशों में है।
1974 में एक्सपोर्ट शुरू करने वाली कंपनी हॉकिन्स कुकर अब तक दुनिया भर में 9.5 करोड़ प्रेशर कुकर बेच चुकी है। प्रेशर कुकर पर 5 साल तक की गारंटी देने वाली हॉकिन्स कुकर कंपनी भारत की ऐसी कारोबारी संस्थाओं में से एक है, जिसने दुनिया भर में अपने ब्रांड को स्थापित किया है। मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल के इस दौर में हॉकिन्स कुकर का एक उदाहरण है कि किस तरह से भारतीय कंपनियां बेहतर तकनीक और गुणवत्ता के साथ कारोबार में विदेशी प्रतिस्पर्धियों को मात दे सकती हैं।