अमेरिकी कारोबारी वॉरन बफे भारतीय स्टार्ट-अप पेटीएम में निवेश करेंगे। बफे की कंपनी बर्कशायर हैथवे देश के पेटीएम की पेरेंट कंपनी वन 97 कम्युनिकेशंस में लगभग 2500 करोड़ रुपए लगाएगी। ऐसा कर बर्कशायर हैथवे को पेटीएम में करीब चार फीसदी की हिस्सेदारी मिलेगी। यह भारत की किसी स्टार्ट-अप कंपनी में बफे का पहला निवेश है। अमेरिकी कारोबारी आमतौर पर इंटरनेट के जरिए कारोबार करने वाली कंपनियों में पैसे लगाने से बचते हैं। मगर यह पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा की मेहनत और आइडिया का कमाल है, जिसने उन्हें प्रभावित किया। इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शर्मा अच्छा कारोबार कर सकते हैं, इसके संकेत उनके कॉलेज के दिनों से ही मिलने लगे थे। वह उन दिनों एक दुकान वाले का फोन इस्तेमाल कर के अपनी पहली कंपनी का काम संभालते थे। आइए जानते हैं कि कैसे उन्होंने देश में ई-कॉमर्स पेमेंट और डिजिटल वॉलेट की सुविधा मुहैया कराने वाली इतनी बड़ी कंपनी खड़ी कर दी।
विजय अलीगढ़ के हरदुआगंज में पले-बढ़े। एक वक्त पर दो किताबें पढ़ते थे। एक हिंदी में, जबकि दूसरी अंग्रेजी वर्जन वाली। इस तरीके से उन्होंने इंजीनियर बनने का सपने पूरा किया। सिर्फ 14 साल की उम्र में उन्होंने 12वीं पास कर ली। पर कम उम्र होने के कारण उन्हें इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला न मिला। ऐसे में उन्हें थोड़ा इंतजार करना पड़ा। चूंकि अधिकतर पढ़ाई हिंदी माध्यम से हुई, लिहाजा अंग्रेजी दुरुस्त करने के लिए उन्होंने यह अनोखा तरीका खोजा था। एक वक्त पर एक ही विषय की हिंदी और अंग्रेजी किताब पढ़ने वाली ट्रिक से उन्हें 1994 में दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग का एंट्रेंस एग्जाम निकालने में मदद मिली।
याहू और नेटस्केप के आगमन के बाद भारत में भी लोगों का नजरिया बदल रहा था। सिलिकॉन वैली में तब लोगों के नौकरी छोड़ कर खुद कंपनी खड़े करने के किस्से भारतीय युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं थे। शर्मा ने भी कुछ ऐसा ही करने की ठानी और एक दोस्त के साथ मिलकर पहली कंपनी एक्सएस कॉर्प्स (XS Corps) बनाई। यह उनके कॉलेज के दिनों की बात है। एक्सएस कॉर्प्स वेब के लिए कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम (सीएमएस) तैयार करती थी, जिसका दफ्तर विजय ने हॉस्टल के कमरे में ही बना रखा था। पास में एक दुकानदार के फोन को वह दफ्तर के लैंडलाइन फोन की तरह इस्तेमाल करते थे।
2005 में उन्होंने इस कंपनी में आठ लाख रुपए निवेश किए, पर 40 फीसदी रकम डूब गई। आर्थिक रूप से उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार न मानी। वन97 कम्युनिकेशंस (पेटीएम की पैरेंट कंपनी) नाम से कंपनी शुरू की। वह इसके बाद इंटरनेट की तीन मूल चीजों (कंटेंट, विज्ञापन और कॉमर्स) पर कुछ प्रयोग करने लगे। आगे 2011 में उनकी जिंदगी में अहम मोड़ तब आया, जब वह अपनी कंपनी में पेमेंट ईकोसिस्टम के आइडिया को लेकर आए।
2011 में उन्होंने पेटीएम के मोबाइल वॉलेट के साथ ई-कॉमर्स कारोबार भी शुरू किए। पेटीएम मॉल और पेटीएम पेमेंट्स बैंक इनमें शामिल हैं। फिर आई नोटबंदी, जो पेटीएम के लिए किसी चांदी से कम नहीं थी। विजय की पेटीएम ऐप, डिजिटल वॉलेट और अन्य सेवाएं नकदी के संकट में लोगों के खूब काम आईं। इधर, पेटीएम हिट हो गया और उधर इसके संस्थापक अरबपतियों की फेहरिस्त में शुमार हो गए थे। जानी-मानी फोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें देश का सबसे युवा अरबपति बताया था।