निर्भय कुमार पांडेय
उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के पुराने वाहनों को बदलने के लिए समुचित कोष का प्रावधान किया गया है। राज्य की सरकारों को भी पुराने वाहन और एंबुलेंस बदलने के लिए सहयोग किया जाएगा। इस घोषणा के बाद पुराने वाहनों की खरीद-फरोख्त के कारोबार से जुड़े लोगों को नुकसान होने की चिंता सताने लगी है।
ओखला में पुरानी बसों की खरीद-फरोख्त करने वाले रामवीर सिंह कहते हैं कि कोविड-19 को लेकर अधिकतर स्कूल और शिक्षण संस्थान बंद रहे। ऐसे में बसों का संचालन करीब-करीब ठप हो गया। पिछले कुछ दिनों पहले स्कूल खुले तो उम्मीद जागी कि अब बसों को संचालन दोबारा से शुरू होगा। राजधानी में डीजल की बसों का संचालन केवल दस साल के लिए ही मान्य हैं। करीब तीन सालों बसों का संचालन नहीं के बराबर हुआ।
इस ओर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए था। कई ऐसे बस संचालक हैं, जो बसों की पुरी किश्त भी नहीं दे पाए हैं और अब दस साल की अवधि को पूरा करने वाले हैं। सरकार को कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए कुछ साल की छूट देनी चाहिए थी। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि आम लोगों के लिए राहत भरी बात है। वेतन पाने वालों को छूट मिली है।
वहीं, ट्रांसपोटर चंदू चौरसिया ने कहा कि आम लोगों के लिए बजट में काफी अच्छे प्रावधान किए गए हैं, लेकिन उनके जैसे ट्रांसपोटर्स को निराशा हाथ लगी है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के दौरान करीब दो साल तक वाहन खड़े रहे थे। उन्हें उम्मीद थी कि ऐसे में सरकार ट्रांसपोटर्स के लिए कुछ रियायत देगी। लेकिन बजट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है। प्रदूषण एक समस्या है, परंतु वाहन के अलावा भी कई कारण है, जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर बढ़ा है।
ट्रांसपोर्ट से जुड़े संजय सम्राट का कहना है कि वित्तमंत्री ने जो बजट पेश किया है, उसमें टैक्सी और बस के संचालन से जुड़े लोगों के लिए राहत की बात नहीं हैं। पुराने वाहनों को कबाड़ में बदलने की योजना का प्रावधान किया गया है। इसका नुकसान उनके जैसे कारोबार से जुड़े लोगों को होगा। उन्होंने कहा कि पिछले दो-तीन सालों में कोविड-19 की वजह से भरी नुकसान हुआ है। ऐसे में पुराने वाहनों को कबाड़ की नीति ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों के लिए कमर तोड़ने का काम करेगी।