केंद्र सरकार ने हाल ही में एम्प्लॉयी प्रोविडेंट फंड (ईपीएफ) में कर्मचारी और उसे काम देने वाली कंपनी दोनों के ही वैधानिक योगदान को अगले तीन महीने के लिए पहले के 12 फीसदी से घटाकर 10% कर दिया था। इससे हर महीने 2250 करोड़ तक की लिक्विडिटी मिलेगी। जहां केंद्र के इस फैसले से नौकरीपेशा लोगों के हाथों में तत्काल रूप से कुछ पैसा पहुंचेगा। वहीं इससे उन्हें कुछ नुकसान भी होगा। बता दें कि कर्मचरियों को उनके ईपीएफ खातों पर 8.5 फीसदी का पोस्ट टैक्स ब्याज भी मिलता है, जो कि अलग-अलग इनकम रेंज वालों को उनके टैक्स ब्रैकेट के हिसाब से अलग तरह से फायदा पहुंचाता है।
30 फीसदी टैक्स ब्रैकेट की इनकम रेंज में आने वाले लोगों के लिए ईपीएफ की सुविधा करीब 12.15%, 20 फीसदी टैक्स ब्रैकेट की इनकम रेंज में आने वालों के लिए 10.6%, 10 फीसदी टैक्स ब्रेकेट में आने वालों के लिए 9.4% और 5 फीसदी की टैक्स रेंज में आने वाले इनकम ग्रुप के लिए ईपीएफ से करीब 9% तक का रिटर्न आता है।
ऐसे में सरकार के नए बदलावों की वजह से कर्मचारियों की कुल तनख्वाह में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी। हालांकि, इससे उन्हें इनकम का एक हिस्सा हाथ में ही मिल जाएगा, जो कि पहले ज्यादा ब्याज दर के साथ ईपीएफ अकाउंट में जमा हो जाता था।
उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो पहले 25 हजार महीने की तनख्वाह वाले लोगों के ईपीएफ अकाउंट में 12% के हिसाब से तीन हजार रुपए का योगदान होता था। यानी कर्मचारी को 22 हजार की तनख्वाह घर ले जाने को मिलती थी। इसके अलावा कर्मचारी की कंपनी भी उसके ईपीएफ अकाउंट में इतनी ही राशि का योगदान देती है। यानी एक महीने में किसी कर्मचारी की के अकाउंट में कुल 6 हजार रुपए ईपीएफ के तौर पर जमा होते थे।
नई स्कीम के तहत अब कर्मचारी और काम देने वाली कंपनी दोनों को कर्मी के ईपीएफ में 10% का योगदान देना होगा। यानी अब किसी कर्मचारी के ईपीएफ अकाउंट में महीने में कुल 5 हजार रुपए ही जमा होंगे। बाकी बचे 1 हजार रुपए उसकी तनख्वाह में जुड़कर आएंगे। यानी अब उसे तीन महीने तक 23 हजार रुपए प्रतिमाह सीधे बैंक खाते में मिलेंगे।
इस पर एक्सपर्ट्स ने भी राय जाहिर की है। चार्टर्ड अकाउंटेट और आर्थिक सलाहकार विवेक जैन ने टाइम्स अखबार को बताया कि कोरोना महामारी के समय जिन्हें सैलरी मिल रही है उन्हें इस तरह की चीजों की जरूरत नहीं है। खासकर तब जब बाजार बंद हैं और महंगाई भी कम है। ज्यादातर खर्च वैसे ही कम हैं। ऐसे समय में हात में ज्यादा पैसे देना भविष्य में कोई मदद नहीं देगा।
ईपीएफ दर में कटौती से किसे फायदा, किसे नुकसान, क्लिक कर जानें…
उद्योग जगत के एक जानकार के मुताबिक, सरकार ने ईपीएफ योगदान में 4 फीसदी की कमी कर कोई खास मदद नहीं पहुंचाई है। वहीं आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ का कहना है कि ईपीएफ स्कीम में योगदान कम करने के कदम से बचा भी जा सकता था। क्लियर टैक्स कंपनी के सीईओ अर्चित गुप्ता के मुताबिक, ईपीएफ दरों में कटौती की वजह से कुछ टैक्स देने वालों को सेक्शन 80 सी के तहत मिलने वाले डिडक्शन्स को देखना होगा। वहीं, अब तक लाखों लोगों ने अपने ईपीएफ बैलेंस विड्रॉ कर लिए हैं। ऐसे में सरकार के यह कदम अपने ऊपर पड़े ब्याज के बोझ को कम करने के लिए है।
हालांकि, सेंटर फॉर डिजिटल इकोनॉमी पॉलिसी रिसर्च के जयजीत भट्टाचार्य ने बताया कि सरकार इसके जरिए बाजार में मांग बढ़ाना चाहती है।