केंद्र सरकार की ओर से कोरोना संकट से निपटने के लिए 21 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया गया है। इस पैकेज का बड़ा हिस्सा बैंकों की ओर से कर्ज के तौर पर घोषित किया गया है। सरकार का मानना है कि बैंकों की ओर से कर्ज जारी करने से कारोबार का विस्तार होगा और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। हालांकि आर्थिक जानकारों का मानना है कि बैंकों पर कर्ज देने के लिए दबाव डालने से आने वाले दो सालों में उनके सामने बैड लोन का संकट गहरा जाएगा। रेटिंग एजेंसी फिच ने अपनी रिपोर्ट में यह आशंका जताई है। दरअसल पहले से ही बैड लोन, डिफॉल्टर्स से जूझ रहे बैंकों के लिए सरकार का यह ऐलान कोढ़ में खाज जैसा संकट साबित हो सकता है।
मोराटोरियम से भी फूल रही हैं बैंकों की सांसें: सरकार की ओर से पहले सभी तरह के टर्म लोन्स की किस्तों पर 90 दिनों के लिए राहत का ऐलान किया गया था। मार्च, अप्रैल और मई तक के लिए मिली इस राहत को अब जून, जुलाई और अगस्त के लिए भी बढ़ा दिया गया है। इस तरह 180 दिन यानी छह महीनों के लिए लोन की किस्तें न देने के विकल्प से भी बैंकों के सामने लिक्विडिटी और बैड लोन का संकट पैदा हुआ है। फिच की रिपोर्ट के मुताबिक इसके चलते बैंकों के 2 से 6 फीसदी लोन फंस सकते हैं।
सरकारी बैंक होंगे ज्यादा प्रभावित: लोन देने की संख्या में तेजी से इजाफा होने के चलते सबसे ज्यादा संकट सरकारी बैंकों को झेलना पड़ सकता है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को 3 करोड़ रुपये का पैकेज जारी करने की बात कही गई है। यह रकम बैंकों की ओर से लोन के तौर पर दी जानी है। पहले से ही कमजोर बैलेंस शीट वाले सरकारी बैंकों को अब संकट में घिरे सेक्टर्स को एक तरह से लोन के तौर पर बेलआउट पैकेज देना होगा। ऐसे में उनके सामने आईडीबीआई बैंक की तरह संकट में घिरने का खतरा होगा।
बढ़ सकता है NPA का संकट: जानकारों के मुताबिक मार्केट में तेजी आए बिना ही यदि कारोबारों को लोन बांटे गए तो उसका मकसद पूरा होना मुश्किल है। ऐसी स्थिति में बैंकों की ओर से जारी किए गए कर्ज के एनपीए के तौर पर फंसने की आशंका होगी। भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक जैसे दिग्गज सरकारी बैंक पहले से ही एनपीएके संकट से जूझ रहे हैं।