भारतीय जीवन बीमा निगम का आईपीओ आने के बाद सरकार भारत पेट्रोलिय का हिस्सा बेचने पर विचार कर रहा है। पहले सरकार ने योजना बनाई थी कि भारत पेट्रोलियम कॉर्प लिमिटेड में अपना पूरा हिस्सा बेचेगी, लेकिन सरकार निवेशकों को आकर्षित करने में विफल रहने के बाद, अब केवल इसका एक चौथाई हिस्सा बेचने पर विचार कर रही है, क्योंकि सरकार का विनिवेश कार्यक्रम अपेक्षा से धीमा है।
दो अधिकारियों ने रॉयटर्स को दी गई जानकारी में बताया कि सरकार अपनी पूरी 52.98% हिस्सेदारी की एकमुश्त बिक्री के बजाय, बीपीसीएल में 20% -25% हिस्सेदारी के लिए बोलियां आमंत्रित कर सकती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि शुरुआत में सरकार ने बीपीसीएल में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचकर 8 से 10 अरब डॉलर जुटाने का लक्ष्य रखा था।
चार साल पहले तैयार की गई थी योजना
चार साल पहले योजना तैयार करने के बाद, सरकार को उम्मीद थी कि रूस के रोसनेफ्ट जैसे प्रमुख खिलाड़ियों की दिलचस्पी हो सकती थी, लेकिन रोसनेफ्ट और सऊदी अरामको ने बोली नहीं लगाई, क्योंकि उस समय तेल की कम कीमतों और कमजोर मांग ने उनकी निवेश योजनाओं को रोक दिया था।
इस वर्ष नहीं होगी बिक्री
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि बीपीसीएल की आंशिक बिक्री भी इस वित्तीय वर्ष में पूरी होने की संभावना नहीं है क्योंकि इस प्रक्रिया में 12 महीने से अधिक का समय लगेगा। उनमें से एक ने कहा कि इसका एक और कारण है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कई बदलावा हुए हैं, जो वर्तमान बाजार के लिए उचित नहीं हैं।
चुनाव का भी रहा प्रभाव
उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव भी एक वजह रही, जिस कारण से नवंबर से फरवरी तक पेट्रोल-डीजल के दामों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। हालाकि चुनाव परिणाम आने के बाद मार्च से कीमतों में इजाफा हुआ है। दोनों अधिकारियों ने कहा कि पिछले महीने सभी बोलीदाताओं के प्रक्रिया से हटने के बाद चर्चा शुरू हो चुकी है।
अपोलो से होने वाली थी डील
अधिकारियों ने कहा कि निजी इक्विटी फर्म अपोलो ग्लोबल मैनेजमेंट और तेल से धातु समूह वेदांत समूह अंतिम बोली लगाने वाले थे। सरकार, वेदांत और बीपीसीएल ने टिप्पणी मांगने वाले ईमेल का तुरंत जवाब नहीं दिया। इसके बाद अपोलो समूह ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। ऐसे में बीपीसीएल की पूर्ण हिस्सेदारी बिक्री पर पीछे हटना सरकार की निजीकरण योजनाओं में धीमी प्रगति का प्रतीक है।
इस वित्त वर्ष नहीं बिकेगी कोई हिस्सेदारी
गौरतलब है कि 2020 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बैंकों, खनन कंपनियों और बीमा कंपनियों सहित अधिकांश सरकारी कंपनियों के निजीकरण की योजना की घोषणा की थी। लेकिन अभी तक बहुत ही धीमी गति रही है। अधिकारियों ने कहा कि सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में आईडीबीआई बैंक के अलावा किसी भी अन्य बैंक को बेचने की योजना को टाल दिया है, जो कि भारतीय जीवन बीमा निगम के स्वामित्व में है।