हर आंख के आंसू पोछने को देश में लागू हो ‘सर्वजनीन बुनियादी आय’ की व्यवस्था: आर्थिक सर्वे
समीक्षा में कहा गया है कि केंद्र सरकार अकेले 950 केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित उप-योजनाओं को चला रही है जिस पर जीडीपी का करीब पांच प्रतिशत खर्च हो रहा है।

आर्थिक समीक्षा में विभिन्न सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के विकल्प के रूप में गरीबों को एक न्यूनतम आय (सर्वजनीन बुनियादी आय) उपलब्ध कराने की पुरजोर वकालत की गयी है। इसके लिये समीक्षा में ‘हर आंख के हर आंसु को पोछने’ के महात्मा गांधी के दृष्टिकोण का उल्लेख किया गया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा मंगलवार (31 जनवरी) को संसद में पेश 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘यूबीआई एक सशक्त विचार है। अगर इसे लागू करने नहीं तो इस पर चर्चा करने का समय जरूर आ गया है।’
समीक्षा में कहा गया है, महात्मा (गांधी) को यूबीआई को लेकर यह चिंता हो सकते थे कि यह सरकार के अन्य कार्यक्रमों की तरह एक और कार्यक्रम है लेकिन अन्त में इसका समर्थन कर सकते हैं। समीक्षा में कहा गया है कि ऐसी योजना की सफलता के लिये दो पूर्व शर्तें पहले से काम कर रही हैं। इसमें एक जनाधारम (जनधन, आधार और मोबाइल प्रणाली) और दूसरा ऐसे कार्यक्रम की लागत में साझेदारी पर केंद्र-राज्य बातचीत है। इसमें अनुमान लगाया गया है कि यूबीआई के जरिये गरीबी को कम कर 0.5 प्रतिशत तक लाने के कार्यक्रम में जीडीपी के 4-5 प्रतिशत के बराबर लागत आएगी। लेकिन इसके लिये शर्त है कि आबादी में उच्च्ंची आबादी वाले 25 प्रतिशत लोग इसके दायरे में न रखे जाएं।
समीक्षा के अनुसार, ‘दूसरी तरफ मौजूदा मध्यम वर्ग को मिलने वाली सब्सिडी तथा खाद्यान, पेट्रोलियम और उर्वरक सब्सिडी की लागत जीडीपी का करीब तीन प्रतिशत है।’ इसमें रेखांकित किया गया है कि गरीब उन्मूलन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। आजादी के समय यह जहां करीब 70 प्रतिशत थी, वह 2011-12 में (तेंदुलकर समिति) लगभग 22 प्रतिशत पर आ गयी। इसमें हर आंख से हर आंसू पोछना उन्हें दो जून की रोटी के लिए समर्थ करने से कहीं कुछ और अधिक करने के बारे में है।
अध्याय सर्वजनीन न्यूनतम आय, महात्मा के साथ और महात्मा के भीतर संवाद शीर्षक वाले अध्याय में कहा गया है, ‘महात्मा ने सभी मार्क्सवादियों, बाजार मसीहाओं, भौतिकवादियों और व्यवहारवादियों से कहीं पहले और गहन तरीके से इसे समझा।’ इसमें कहा गया है कि इसकी भारत में आवश्यकता है क्योंकि मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं में गलत आबंटन, चोरी और गरीबों के शामिल नहीं होने जैसी खामियां है। समीक्षा में कहा गया है कि केंद्र सरकार अकेले 950 केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित उप-योजनाओं को चला रही है जिस पर जीडीपी का करीब पांच प्रतिशत खर्च हो रहा है।
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