सामान्य व्यावसायिक क्षेत्र में ‘क्रेता सावधान रहो’ का सिद्धांत लागू होता है, लेकिन यही सिद्धांत वित्तीय बाजार और पूंजी बाजार में निवेशकों पर लागू नहीं हो सकता। माल का क्रेता उसे भौतिक रूप से देख-परख कर खरीद सकता है, लेकिन जमाओं और प्रतिभूतियों के मामले में ऐसा नहीं होता, क्योंकि यह भौतिक संपत्ति नहीं होती। इनका निरीक्षण नहीं किया जा सकता। प्रतिभूतियों को जारी करते समय दी गई सूचनाओं में मिथ्या वर्णन या कपट की संभावना बनी रहती है, इससे निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
‘लाइक’ और ‘कमेंट’ देने के बदले पैसा देने के नाम पर चल रही ठगी का धंधा
कंपनियां और समामेलित संस्थाएं, जो विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियां जारी करती हैं, उनके विरुद्ध निवेशकों की बहुत-सी शिकायतें आती रहती हैं। बहुत-सी ऐसी घटनाएं भी हुई हैं, जिनमें निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। हर्षद मेहता कांड, सीआर भंसाली कांड, नीरव मोदी, केतन पारिख घोटाला जैसे कांड समय-समय पर हुए हैं। इनके अलावा ‘प्लांटेशन’ कंपनियों, चिट फंड कंपनियों, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर ‘लाइक’ और ‘कमेंट’ देने के बदले पैसा देने और घर बैठे आनलाइन नौकरी देने के नाम पर भी लोगों को ठगी का शिकार बनाया गया है और बहुत-सी ‘पोंजी’ योजनाओं के माध्यम से निवेशकों और जमाकर्ताओं को ठगा गया है।
शेयर बाजार में घोटाला तब होता है, जब दलाल, डीलर, अंदरूनी प्रबंधन से जुड़े सूत्र और व्यापारी दूसरे लोगों को या खुद ही निवेशकों को अनुचित कीमतों पर शेयर खरीदने या बेचने के लिए बरगलाते हैं। प्रतिभूति धोखाधड़ी तब होती है, जब कोई पक्षकार अवैध रूप से प्रतिभूतियों को खरीदता, बेचता और व्यापार करता है। इसमें शेयर की कीमत के बारे में गलत जानकारी देना, कंपनी के बारे में गोपनीय जानकारी बाहर करना, फर्म या बैंकों के शीर्ष अधिकारियों को भ्रष्ट करना, उच्च कीमतों पर शेयर बेचना, स्टाक के बारे में दलालों द्वारा गलत मार्गदर्शन करना आदि गतिविधियां शामिल हैं।
फर्जी कंपनी बना कर दूसरी कंपनी की समग्र संपत्ति और अर्जित अवैध आय को छिपाने और संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है। इन कंपनियों का उपयोग धनशोधन, कर चोरी और अन्य प्रकार की धोखाधड़ी के लिए किया जाता है। इन कंपनियों में सक्रिय व्यावसायिक संचालन या महत्त्वपूर्ण संपत्तियां नहीं होती हैं। पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने लगभग चार लाख फर्जी कंपनियों को बंद कर दिया। कंपनियों में अंदरूनी व्यवसाय भी धोखाधड़ी का बड़ा माध्यम है।
जब कंपनी के आंतरिक प्रबंधन से जुड़े व्यक्ति गोपनीय जानकारियों के आधार पर कंपनी के स्टाक खरीदने या बेचने और स्टाक की कीमतों में हेरफेर करने के लिए सूचनाओं का उपयोग करते हैं तो वह अंदरूनी व्यवसाय होता है। अंदरूनी व्यवसाय कंपनी अधिनियम, 2013 और सेबी अधिनियम, 1992 द्वारा निषिद्ध है। इसके बावजूद यह काम धड़ल्ले से होता है, जिसका खामियाजा आम निवेशक को भुगतना पड़ता है। वित्तीय विवरण लेखांकन में भी धोखाधड़ी की जा सकती है। इसके अंतर्गत कंपनी की राजस्व प्रणाली को छिपाने के लिए जानबूझ कर वित्तीय विवरणों में हेरफेर की जाती है। सत्यम कंपनी का घोटाला इसी प्रकार का था।
पिछले वर्षों में चर्चित रहे नीरव मोदी और केतन पारिख द्वारा किए गए घोटालों ने भी भारतीय वित्तीय बाजारों को बहुत प्रभावित किया। नीरव मोदी पर पंजाब नेशनल बैंक को तेरह हजार करोड़ रुपए की चपत लगाने के आरोप हैं। उसने यहां बैंकों से हजारों करोड़ का कर्ज ले रखा था। वह 2018 में भारत छोड़कर विदेश चला गया। बाद में पंजाब नेशनल बैंक ने नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और अन्य आरोपियों के खिलाफ 280 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया। अभी तक उनका भारत में प्रत्यावर्तन नहीं हो पाया है।
कृषि बैंक, नागपुर जिला सहकारी बैंक, माधवपुरा बैंक जैसे अनेक बैंक दिवालियापन की दिशा में बढ़ते जा रहे हैं। घोटाला कोई भी हो, कंपनी और बैंक चाहे कोई भी दिवालिया हो, कोई भी वित्तीय संस्थान घोटाले में लिप्त हो, अंतत: इसका खामियाजा निवेशकों और जमाकर्ताओं को भुगतना पड़ता है। ये सारी गतिविधियां बाजार को अस्थिर करती हैं। घोटालों के बाद जांच पड़ताल होती है, रोकने के उपायों की घोषणा होती है। कुछ गिरफ्तारियां होती हैं। मगर निवेशकों के हाथ कुछ भी नहीं लगता। अगर कुछ मिलता भी है, तो वह न के बराबर होता है।
इन सबको देखते हुए निवेशकों और जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार तथा अन्य एजंसियों ने अपने हिसाब से बहुत से प्रयास भी किए हैं। निवेशकों को यह विकल्प भी दिया गया है कि वे निवेश संबंधी शिकायतें जिला उपभोक्ता फोरम तथा उपभोक्ता संरक्षण राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग में दायर करा सकते हैं। सेबी ने स्टाक एक्सचेंज, म्युचुअल फंड सहित प्राथमिक और द्वितीयक बाजार में कार्यरत विभिन्न मध्यस्थों और संबंधित व्यक्तियों के लिए अनेक नियम, उपनियम बनाए हैं तथा दिशा-निर्देश जारी किए हैं, ताकि वे निवेशकों के हितों के विरुद्ध कार्य न कर सकें।
निवेशकों की शिकायतों का समाधान करने तथा उन्हें समुचित संरक्षण प्रदान करने की दृष्टि से कंपनी अधिनियम, प्रतिभूति अनुबंध अधिनियम, डिपोजरी अधिनियम आदि जैसे बहुत से कानूनों के माध्यम से प्रयास किए गए हैं।
कंपनियों तथा विभिन्न वित्तीय संस्थाओं द्वारा जारी की जाने वाली ऋण प्रतिभूतियों के लिए क्रिसिल तथा आइसीआर जैसी संस्थाओं से रेटिंग प्राप्त करना कई मामलों में आवश्यक किया गया है। निवेशकों को शिक्षित करने की दृष्टि से भी समय-समय पर बहुत से प्रयास किए गए हैं। कंपनी अधिनियम के तहत ‘निवेशक शिक्षा संरक्षण कोष’ की स्थापना की वैधानिक व्यवस्था की गई है।
इस कोष की जमा राशियों से निवेशकों को वित्तीय बाजार के विभिन्न जोखिमों की जानकारी देने तथा जोखिमों से बचाव करते हुए निवेश के लिए प्रेरित करने की दृष्टि से पूरे देश में समय-समय पर विशेष अभियान चलाए जाते हैं। सेबी, भारतीय रिजर्व बैंक, स्टाक एक्सचेंज आदि द्वारा रेडियो, टीवी, प्रेस और अन्य माध्यमों से निवेशकों को विभिन्न जोखिमों से सावधान रहने के लिए प्रेरित भी किया जाता है। समय-समय पर अलग-अलग शहरों में कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
इन सभी उपायों के बावजूद आज भी यह निश्चित तौर पर कहना मुश्किल है कि भविष्य में कोई और घोटाला नहीं होगा। भविष्य में कोई और बैंक तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी, सहकारी संस्था आम जनता की गाढ़े पसीने की कमाई नहीं हड़पेगी। निवेशकों के हितों की सुरक्षा की दृष्टि से जहां सरकारी तथा वित्तीय बाजारों से जुड़ी विभिन्न एजंसियों को चौकन्ना रहने की जरूरत है, वहीं स्वयं निवेशकों को भी सावधान रहने की आवश्यकता है।
निवेशकों और जमाकर्ताओं को अपने निवेश संबंधी निर्णय लेते समय धन की सुरक्षा, तरलता तथा उचित लाभार्जन के सिद्धांतों का इस प्रकार से समायोजन करना चाहिए कि इनके द्वारा लगाया गया पैसा पूरी तरह से सुरक्षित रहे तथा उन्हें वांछित लाभ भी मिल सके। यह तभी संभव है जब निवेशक वित्तीय बाजारों में होने वाले तीव्र परिवर्तनों तथा विकास पर कड़ी नजर रखे। वह अपने आंख-कान खुले रखते हुए कंपनियों और संस्थाओं के प्रपत्रों, सूचनाओं तथा जानकारियों का अध्ययन करता रहे और सोच-समझ कर खून-पसीने की कमाई का निवेश करें।
इसके लिए अच्छे निवेश सलाहकार की सलाह ली जा सकती है। अगर निवेशक इतना ध्यान देने की स्थिति में नहीं है, तो उसको डाकघर और सरकारी बैंकों में अपनी बचत की राशि जमा रखनी चाहिए। इनमें ब्याज कम है, लेकिन लोभ में अपना पैसा डुबाने की तुलना में उसको सुरक्षित रखने की दृष्टि से यह निर्णय अधिक समझदारी भरा होता है।