चीन को रोकने के लिए अमेरिका व अन्य देशों का साथ ले भारत
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कण्डेय काटजू का मानना है कि आर्थिक मकसद साधने के लिए चीन भारतीय इलाकों में घुसपैठ से बाज नहीं आएगा। उसकी विस्तारवादी नीतियों पर लगाम लगाने के लिए अमेरिका व उस जैसे अन्य देशों की मदद लेना ही भारत के लिए एक मात्र विकल्प है।

लद्दाख में होने वाली घटनाओं के बारे में कई तरह की बातें कही जा रही हैं। प्रधानमंत्री ने शुरू में कहा कि भारतीय क्षेत्र में कोई घुसपैठ नहीं हुई है, लेकिन निर्विवाद तथ्यों के सामने आने पर उन्होंने सफाई पेश कर डाली। नि:संदहे चीन ने इस इलाके में घुसपैठ की है और कई क्षेत्रों पर अपना दावा ठोंक दिया है।
चीन ने बड़े पैमाने पर अपने देश में औद्योगिक आधार बना लिया है। अपने विशाल 3.2 ट्रिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार के साथ यह बाजार और कच्चे माल की तलाश करते हुए, लाभदायक निवेश के लिए नए रास्ते बना रहा है, जैसा साम्राज्यवादी देश करते हैं। तिब्बत और लद्दाख जैसे पर्वतीय क्षेत्र साइबेरिया (Siberia) की तरह बंजर दिखाई देते हैं, लेकिन साइबेरिया की तरह वे बहुमूल्य खनिजों (valuable minerals) और अन्य प्राकृतिक संपदा से भरे हैं। यही कारण है कि चीन ने तिब्बत, और लद्दाख के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा भी कर लिया है।
सलामी रणनीति ( salami tactics ) का उपयोग करके इसने हाल ही में गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो, हॉट स्प्रिंग्स और लद्दाख के अन्य हिस्सों (1960 के दशक में अक्साई चिन पर पहले से ही कब्ज़ा कर लिया था ) पर कब्ज़ा कर लिया है। इन क्षेत्रों में मूल्यवान खनिज हैं, जिनकी चीन के बढ़ते उद्योग को आवश्यकता है, और यही हाल ही में हो रही सभी घटनाओं की वास्तविक व्याख्या है।
सभी को एक बात स्पष्ट रूप से समझनी चाहिए कि राजनीति, केंद्रित अर्थशास्त्र (concentrated economics) है इसलिए राजनीति को समझने के लिए इसके पीछे के अर्थशास्त्र को समझना ज़रूरी है। अर्थशास्त्र के कुछ सख्त कानून हैं, जो किसी भी व्यक्ति की इच्छा के प्रभाव से स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं।
उदाहरण के लिए, अंग्रेजों ने भारत को क्यों जीता? यह किसी पिकनिक के लिए या आनंद के लिए नहीं था। वास्तव में अंग्रेज़ों को यहां के गर्म मौसम से बहुत तकलीफ़ थी। उन्होंने भारत पर विजय प्राप्त की क्योंकि उनके उद्योगों के एक निश्चित स्तर तक बढ़ जाने के कारण उन्हें विदेशी बाजारों, कच्चे माल और सस्ते श्रम की आवश्यकता थी।
इसी तरह, प्रथम विश्व युद्ध का कारण क्या था? यह दुनिया के उपनिवेशों के पुनर्विभाजन के लिए था। ब्रिटेन और फ्रांस ने पहले ही अपना औद्योगिकीकरण कर लिया था, और अधिकांश पिछड़े देशों को अपना उपनिवेश, यानी बाजार और सस्ते कच्चे माल और सस्ते श्रम का स्रोत बना लिया था।
जर्मन औद्योगिकीकरण बाद में शुरू हुआ, लेकिन जल्द ही यह ब्रिटिश और फ्रांसीसी को टक्कर देने लगा, और फिर जर्मनों ने भी अधिक उपनिवेशों की मांग की। लेकिन ब्रिटिश और फ्रांसीसी उनके साथ उपनिवेशों का बंंटवारा करने के लिए तैयार नहीं थे, और इसके परिणामस्वरूप युद्ध हुआ। जापान ने चीन और अन्य देशों पर आक्रमण क्यों किया? अपने बढ़ते उद्योग के लिए कच्चा माल और बाजार प्राप्त करने के उद्देश्य से!
इसी तरह, चीन द्वारा बड़े पैमाने पर औद्योगिक आधार बनाए जाने के बाद उन्हें बाजार और कच्चे माल की आवश्यकता है, और इसने उन्हें साम्राज्यवादी बना दिया है। उन्होंने एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और यहां तक कि विकसित देशों में भी प्रवेश कर लिया है।
वर्तमान में चीनी बहुत सावधानी से आगे बढ़ रहे हैं। वे बड़े पैमाने पर आर्थिक उपायों का उपयोग करते हैं, सैन्य शक्ति का नहीं। हालांकि, वे कभी-कभी सैन्य उपायों का भी उपयोग करते हैं, और उन्होंने एक विशाल सेना का निर्माण भी किया है। वर्तमान में वे सलामी रणनीति का उपयोग करते हैं, कदम दर कदम आगे बढ़ते हैं।
इस बात से यह पता चलता है कि हाल ही में गलवान घाटी और लद्दाख के अन्य स्थानों पर चीनी वर्चस्व कायम करने की उसकी कोशिशों की प्रक्रिया में आखिर क्या हुआ था। भविष्य में भी वे लद्दाख और अन्य भारतीय क्षेत्रों के हिस्सों को थोड़ा-थोड़ा कर उन पर कब्ज़ा करने की कोशिश करते रहेंगे, जाहिर है वहां पाए जाने वाले कच्चे माल और खनिज पदार्थों के कारण ।
यह बताया गया है कि 22 जून को भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल और चीनी सेना के मेजर जनरल के बीच वार्ता हुई, जिसमेंं हमारे लेफ्टिनेंट जनरल ने यह मांग की कि एक समय सीमा के अंदर दोनों सैनिक उस लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) जो चीनी घुसपैठ के पहले थी, से दो किलोमीटर पीछे चले जाएंं। दिक्कत यह है कि चीनियों ने कभी नहीं माना कि लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल क्या है, क्योंकि ऐसा मानने पर उसका विस्तारवाद बाधित हो जाएगा।
ऊपर बताई गई सभी बातों को देखते हुए, यह समझना मुश्किल नहीं है कि इसकी बहुत कम संभावना है कि चीन एलएसी को स्वीकारने की मांग मानेगा। आशंका तो यही है कि भविष्य में भी चीन धीरे-धीरे हमारी सीमा के अंदर घुसपैठ करके आगे बढ़ता चलेगा।
अब समय आ गया है कि हमारे नेताओं को इस बात का एहसास हो, और अमेरिका जैसे अन्य देशों के साथ हाथ मिलाकर चीनी विस्तारवादी साम्राज्यवाद के खिलाफ खड़े हों। ठीक वैसे जैसे रूस, अमरीका, ब्रिटेन और अन्य देशों ने हिटलर के खिलाफ संगठित होकर एक सयुंक्त मोर्चे का निर्माण किया था। यह हमारे और दुनिया के अन्य हिस्सों पर चीनी वर्चस्व को रोकने का एक मात्र तरीका है।
(लेख में लिखे विचार लेखक के हैं, जनसत्ता.कॉम के नहीं)