भारत में पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह में दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के समूह आसियान के दस देशों के प्रतिनिधि एक साथ मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने जा रहे हैं। यह अनूठा गणतंत्रीय आतिथ्य इस कारण भी मायने रखता है कि भारत आसियान देश का सदस्य नहीं है, हांलाकि वह सुरक्षा में बढ़ोत्तरी के उद्देश्य से सन 1994 में गठित किए गए आसियान के एशियाई क्षेत्रीय फोरम (एशियन रीजनल फोरम) में शामिल अमेरिका, रूस, चीन, जापान और उत्तरी कोरिया सहित 23 सदस्यों में से एक है। अतः इस दृष्टिकोण से आसियान देशों से सहयोग और संपर्क बनाए रखने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। इस बार के गणतंत्र दिवस समारोह में संयुक्त मुख्यआतिथ्य की प्रारम्भ की गई अनूठी परम्परा के कारण भारतीय संस्कृति के यजुर्वेदीय तैत्तिरीयोपनिषद का “अतिथिदेवो भव:” आदर्श वाक्य मानो सजीव हो गया है। भारत के विश्व के लगभग समस्त देशों के साथ राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक रिश्तों के मूल में कहीं न कहीं इसी अतिथि सत्कार के जल का सिंचन है, जिसके कारण आज विश्व के कोने-कोने में भारतीय सुदृढ़ संबंधों के घने फलदार वृक्ष खड़े हुए हैं।
अतिथि सत्कार के संबंध में ऋग्वेद के ऐतरेय आरण्यक में भी एक बात कही गई है कि अतिथि हमेशा सज्जन व सुपात्र को ही बनाना चाहिए। वैश्विक परिदृश्य में भारत के लिए आज सज्जन और सुपात्र देश वही हैं, जो उसके उच्च विकास के मार्ग पर अग्रसर गतिशील भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए व्यापार एवं निवेश, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी, उन्नत सामग्रियां, अन्तरिक्ष विज्ञान और उनके अनुप्रयोग, पर्यटन, मानव संसाधन विकास, परिवहन एवं अवसंरचना, स्वास्थ्य एवं भेषज जैसे क्षेत्रों में गुणात्मक एवं नए आयामों के साथ अपार संभावनाएं रखते हों। सम्भवतः आसियान के दसों देशों ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम के साथ उत्तरोत्तर विकसित हुए भारतीय सम्बन्धों की पच्चीसवीं वर्षगांठ और शिखर सम्मेलन साझेदारी की पंद्रह वर्षों की पूर्णता को किसी उत्सव की भांति हर्षोल्लास से मनाने के लिए इससे अच्छा सुअवसर और कोई हो ही नहीं सकता था। एक साथ दस देशों के प्रतिनिधियों का भारतीय गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि होना अपने आप में एक ऐतिहासिक अवसर है।
भारत और आसियान देशों के मध्य भागीदारी की शुरुआत 1992 में हुई थी और तब से अब तक दोनों ने लगभग 40 से 70 अरब डॉलरों का आपसी निवेश साझा किया है। विश्व की लगभग 30 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले भारत-आसियान देशों ने मिलकर लगभग 511 ख़रब की खड़ी की अपनी सुदृढ़ अर्थव्यवस्था से एक मिसाल कायम की है। उस पर भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह के विशिष्ट आतिथ्य निमंत्रण ने इस मिसाल को बुलंदियों के शिखर पर स्थापित कर दिया है और समग्र संबंधों की अतिरेक संभावनाएं हिलोर मारने लगी हैं। यह विशेष गणतांत्रिक सत्कार आसियान देशों में बसे हुए उन 60 लाख भारतीयों का भी है जो विश्व में भारत के अपरिमित संसाधन कहे जा सकते हैं।
आसियान देशों का अतिथि के रुप में हमारे गणतंत्र समारोह में आमंत्रित किया जाना एक ओर इन देशों के साथ सभी तरह के रिश्तों में मजबूती लाने की दिशा में उठाया सारगर्भित कदम तो है ही, लेकिन कहीं न कहीं इससे भारत को दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में प्रमुख सुरक्षा संतुलनकारी शक्ति के रूप में स्थापित होने में भी सहायता मिलेगी। वैसे भी भारत की ‘लुक ईस्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ ने आसियान देशों के साथ भारत के आर्थिक, व्यापारिक और रणनीतिक रिश्तों को काफी दृढ़ता प्रदान की है। इसका सबसे बड़ा संकेत यह है कि पहले एशिया प्रशांत क्षेत्र कहने वाले अमेरिका को भी अब इसे धीरे-धीरे भारत-प्रशांत क्षेत्र मानने पर मजबूर होना पड़ा है।
आज अमेरिका मान रहा है, लेकिन वह दिन भी दूर नहीं जब पूरी दुनिया मानेगी कि इस गणतंत्रीय आतिथ्य की स्वस्थ परम्परा से आसियान के जीवंत सदस्य देशों तथा विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र देश भारत के मध्य संवर्धित बहुआयामी कार्यकलापों और आर्थिक साझेदारी से जनसंपर्कों की मुक्त एवं समावेशी प्रक्रिया का अप्रतिम संवेग संचारित हुआ है।