Conversion In India And Cultural Nationalism: स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekanand) ने कहा, “जिस धर्म की पवित्र भाषा में अंग्रेजी ‘Exclusion’ (अर्थात हेय या परित्याज्य) के शब्द का किसी भी तरह अनुवाद नहीं किया जा सकता, मैं उसी धर्म से जुड़ा हूं। जो जाति पृथ्वी के समस्त धर्म और जाति के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों (Oppressed And Refugees) को हमेशा से, खुले मन से, आश्रय देता आया है, मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने पर गर्व है।”
आप लोगों को यह बताते हुए मैं गौरव महसूस कर रहा हूं कि जिस वर्ष रोमन जाति (roman race) के भयंकर उत्पीड़न और अत्याचार (Horrible Harassment And Atrocities) ने यहूदियों (Jews) के पवित्र देवालय (Holy Temple) को चूर-चूर कर दिया था, उसी वर्ष यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट अंश (Cleanest Residual) दक्षिण भारत में आश्रय के लिए आया तो हम लोगों ने उन लोगों को सादर ग्रहण किया और आज भी उन लोगों को अपने हृदय में धारण किए हुए हैं। ऐसे धर्म का अनुयायी (Follower) होने में मैं गर्व महसूस करता हूं, जिसने जोरोस्त्रियन के अनुयायियों (Follower Of Zoroastrian) और वृहद पारसी जाति (Greater Zoroastrian caste) के अवशिष्ट अंश (residual fraction) को शरण दी थी और जिसका पालन वह आज तक कर रहा है। मैं उसी धर्म से जुड़ा हूं।”
संभवतः स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekanand) की इसी उपरोक्त विवेचनात्मक उक्ति (Critical Statement) को ध्यान में रखकर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के विद्वान न्यायमूर्ति एमआर शाह और सी टी रविकुमार की पीठ (Bench of justices MR Shah and CT Ravikumar) ने भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय (Ashwani Kumar Upadhyay) की याचिका पर टिप्पणी की होगी। केंद्र सरकार ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Freedom) में अन्य लोगों को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार नहीं है।

यह निश्चित रूप से धोखाधड़ी, जबरदस्ती या प्रलोभन (Fraud, Coercion Or Inducement) के माध्यम से किसी व्यक्ति को परिवर्तित करने के अधिकार को स्वीकार नहीं करता। धर्म परिवर्तन करवाना किसी का अधिकार नहीं हो सकता। धर्म परिवर्तन पर सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामे में यह जानकारी दी गई है। सरकार ने कहा है कि वह जबरन धर्म परिवर्तन के इस खतरे से परिचित है। ऐसी प्रथाओं पर काबू पाने वाले कानून समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं।
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्र और राज्यों को उपहार और मुद्रा प्रतिबंधों के माध्यम से डराने, धमकाने, धोखा देने और लालच देकर होने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। उपाध्याय ने अपने अनुरोध में कहा था कि जबरन धर्म परिवर्तन एक राष्ट्रव्यापी समस्या (Nationwide Problem) है, जिसके तत्काल समाधान की आवश्यकता है। उपाध्याय ने प्रस्तुत किया था कि इस तरह के जबरन धर्मांतरण के शिकार अक्सर सामाजिक और आर्थिक रूप से अपरिचित लोग होते हैं। विशेष रूप से देखने वाली बात यह है कि ये सब अनुसूचित जाति और जनजाति (Scheduled Castes and Tribes) के लोग होते हैं।

हालांकि, सरकार इस तरह के खतरों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने में विफल रही है। धोखाधड़ी, धोखा और डराने-धमकाने के माध्यम से इस तरह के धर्मांतरण को व्यापक रूप से लेते हुए, अदालत ने कहा कि यदि इस तरह के धार्मिक धर्मांतरणों को नहीं रोका जाता है, तो वे राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकों के धर्म और विवेक की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। जस्टिस शाह और हिमा कोहली (Justice Shah And Hima Kohli) की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) से उन उपायों को बताने को कहा, जो सरकार लालच के माध्यम से जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए कर रही है।
खंडपीठ ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह अपना रुख स्पष्ट करे और जवाब दे कि बल, छेड़खानी या धोखाधड़ी (Force, Extortion or Fraud) के माध्यम से इस तरह के जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। न्यायालय ने इस संबंध में कहा कि धर्म की स्वतंत्रता हो सकती है, लेकिन जबरन धर्म परिवर्तन से धर्म की स्वतंत्रता नहीं हो सकती है।
लालकृष्ण आडवाणी का धर्मांतरण के विरुद्ध राष्ट्रीय सहमति पर था जोर
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) ने धर्मांतरण के खिलाफ राष्ट्रीय सहमति बनाए जाने पर बल दिया था। उन्होंने कहा था कि इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर बहस होनी चाहिए। श्री आडवाणी के अनुसार धर्मांतरण के विरुद्ध अभियान किसी समुदाय के खिलाफ नहीं हो सकता है, और न ही होना चाहिए। संविधान विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा (Constitutional Expert Faizan Mustafa) लिखते हैं: धर्मांतरण विरोधी कानून पुराने आधार पर बनाए गए हैं कि महिलाओं, एससी और एसटी को सुरक्षा की जरूरत है, वे अपने दम पर महत्वपूर्ण निर्णय नहीं ले सकते हैं। वे एक जातिवादी और पितृसत्तात्मक समाज (Casteist And Patriarchal Society) के सामाजिक पदों पर टिके रहते हैं।

दुनिया में तीन ऐसे बड़े धर्म हैं जिनके कारण दुनियां में “धर्मांतरण” जैसा शब्द आया। यह बड़े धर्म हैं- बौद्ध, ईसाई और इस्लाम (Buddhism, Christianity and Islam)। तीनों ही धर्मों ने दुनिया के पुराने धर्मों के लोगों को अपने धर्मों में स्वेच्छा से दीक्षित किया और जबरन धर्मांतरित किया। उस काल में इन तीनों धर्मों के सामने थे हिंदू, यहूदी धर्म के अलावा दुनिया के कई तमाम छोटे और बड़े धर्म। भारत में प्राचीन काल (Ancient Age) से ही दो धर्म अस्तित्व में रहे पहला जैन (Jain) और दूसरा हिंदू (Hindu) धर्म है।
उन दोनों ही धर्मों के लोगों को धर्मांतरण के लिए कहीं-कहीं स्वेच्छा (Voluntarily) से, तो अधिकतर मजबूरी के चलते अपना धर्म छोड़कर दूसरा धर्म अपनाना पड़ा। प्राचीन काल से लेकर आज तक भारतीय समाज में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण होते आए हैं। प्राचीन काल में जैन और बौद्ध धर्मों में हिंदुओं का धर्मांतरण हुआ, मध्यकाल (Medieval Age) में इस्लाम और सिख (Sikh) धर्म में और आधुनिक काल (Modern Age) में हिंदुओं का ईसाई और बौद्ध तथा इस्लाम में धर्मांतरण जारी है।
“प्रत्येक व्यक्ति धर्म में ऐसा अंधा हो गया कि पास में देखने की दृष्टि खो दी”
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि “प्रत्येक व्यक्ति अपने ही धर्म से कुछ इस प्रकार चिपककर अंधा हो गया है कि उसके पास अपने आसपास देखने की दृष्टि ही नहीं है। वह देख नहीं पाता कि संसार में किसी और का भी अस्तित्व है। वह सब को अपने जैसा बनाने के लिए निरंतर संघर्ष करता ही रहता है। वह अपने विकास का प्रयत्न नहीं करता, वह औरों को अपने जैसा बनाने में अपना प्राण खपाता रहता है। वह अपने धर्म को समझने का प्रयत्न नहीं करता, दूसरों का धर्म परिवर्तन कराने का प्रयत्न करता है। वस्तुतः धर्म वही पूर्ण होगा, जो संसार भर के वैविध्यपूर्ण चरित्रों को अपने हृदय में स्थान दे सके। वैदांतिक धर्म (Vedantic Religion) सबको आश्रय देता है और आदेश देता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वभाव के अनुसार अपना धर्म चुन ले…।”