हमारे दिल को चोट पहुंची है। हमारी पूरी शक्ति आपके साथ है। इस घटना पर मैं सरकार का समर्थन करता हूं। इस देश को कोई भी शक्ति तोड़ नहीं सकती है। हिंदुस्तान की आत्मा पर हमला हुआ है। उनको मालूम होना चाहिए कि यह देश इन चीजों को भूलता नहीं है। यह समय दुखद है और इस घड़ी में हम पूरी तरह से भारत सरकार के साथ हैं’।
-राहुल गांधी
स्तंभ की शुरुआत राहुल के बयान से इसलिए क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष की भाषा पूरे हिंदुस्तान की भाषा है। यह उस गंगा-जमुनी तहजीब की भाषा है जो इस देश को कभी टूटने नहीं देगी। महाशोक की इस घड़ी में आज जब हम पक्ष-विपक्ष, तेरा-मेरा छोड़कर एक साथ इकट्ठा हुए हैं तो यह कुर्बानी है उन 40 जांबाजों की। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने जिम्मेदाराना तरीके से सरकार का साथ दिया है और सरकार ने जिस सख्ती से एलान किया है, वह भावना है पूरे हिंदुस्तान की। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि आतंकवाद ऐसी विपत्ति है जिससे कोई समझौता नहीं हो सकता। शहीदों की सूची में हिंदू का नाम भी है और मुसलमान का भी। इसमें कथित ऊंची जाति के लोग भी हैं और पिछड़ी जाति के भी, लेकिन आज तिरंगे में लिपटकर ये सब सिर्फ भारतवासी हैं।
इस समय बातें बहुत कही जा सकती हैं और चुप भी रहा जा सकता है। सरकार को उसके पुराने बयान याद दिलाए जा सकते हैं और विपक्ष को भी आईना दिखाया जा सकता है, लेकिन यह समय न तो सरकार का था और न विपक्ष का। यह समय था हिंदुस्तान के बेटों का। अगर शुरू किया है तो स्तंभ लिखना है। इस वक्त में कलम को नीचे रखकर आंखें बंद भी की जा सकती थीं। हर वक्त बोलना या लिखना जरूरी होता है क्या, लेकिन इतने बड़े हमले के बाद सीआरपीएफ ने अपने शहीदों की याद में एलान किया है ‘न भूले हैं और न भूलेंगे’। फिर एक स्तंभ सिर्फ उन्हें ही समर्पित क्यों न हो, जो लौट के नहीं आएंगे।
बिहार के एक गांव का आम आदमी कह रहा है कि गर्भवती बहू को कैसे बताऊं, पोते को कैसे संभालूं। मीडिया के कैमरों के सामने उसके आंसू नहीं हैं। उसकी हिम्मत के आगे पक्ष-विपक्ष, नेता और पत्रकार सब चुप हैं। उसके सामने बोलने के लिए कैमरा तब आया है जब उसके पास बोलने के लिए कुछ है ही नहीं।
दहशतगर्दों ने एक झटके में पूरे देश को दहलाने की कोशिश की, लेकिन यह इस देश का जज्बा है कि टूटने के बजाय वह अचानक से बहुत मजबूत दिखने लगा। प्रधानमंत्री से लेकर राहुल गांधी तक सब एकजुट हुए। दहशतगर्दों का मकसद ही यही था कि ऐन चुनावी वक्त में पूरा देश टूट जाए। आरोप-प्रत्यारोप में सब एक-दूसरे को नोचने लगें। लेकिन न हिंदुस्तान की हुकूमत ने ऐसा किया और न आवाम ने।
यह वह मिट्टी है जहां सेना के एक-एक जवान से पूरे देश का रिश्ता होता है। सेना का एक जवान पूरे देश का बेटा और भाई होता है। सेना न कांग्रेस की है और न भाजपा की। सेना हिंदुस्तान के नागरिकों की है। अपने आसपास नजरें दौड़ाइए, किसानी पट्टी से आने वाले लोगों ने ही इस देश को सबसे ज्यादा जवान दिए हैं। खेतों की मिट्टी से ही वो जवान पैदा हुए जो सीमा पर जाकर देश के लिए खड़े होते हैं। कांग्रेस और भाजपा ही नहीं, हर हिंदुस्तानी चाहता है कि उसके देश की सेना सबसे ज्यादा मजबूत हो। उसे कांग्रेस और भाजपा की सरकार पर भरोसा हो या नहीं, लेकिन उसे अपनी सेना पर पूरा भरोसा है।
अभी हम सामना कर रहे हैं रोती-बिलखती बेवा औरतों का, पिता की राह तकते बच्चों का और बेटे का जनाजा उठाते बुजुर्ग कंधों का। इनका तो डीएनए ही ऐसा है कि अपना दर्द छुपाकर कह रहे हैं, मुझे मेरे पति, पिता और बेटे की शहादत पर गर्व है। वे अपने आंसुओं को देश के नाम कुर्बान कर रहे हैं। यह देश के नागरिकों का जज्बा ही है कि बेटे की चिता को आग देने जा रहा बाप बोलता है कि वह अपने दूसरे बेटे और पोते-पोतियों को भी सेना में भेजना चाहता है। बेवा बोलती है कि मेरा पति नहीं रहा तो मुझे ही सरहद पर भेज दो। ये सब असली हिंदुस्तान के असली संवाद हैं।
मुंबई पर हुआ आतंकवादी हमला भी आज याद आ रहा है। किस तरह मुंबईकरों ने एक साथ उठकर आतंकवादियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। आज भी पर्यटक जब मुंबई जाते हैं तो ताज होटल के उस हिस्से के पास तस्वीरें खिंचवाते हैं जिस पर अभी भी हमले के निशां मौजूद हैं। हमले के प्रतीक के साथ जब हंसता-खिलखिलाता जोड़ा सेल्फी लेता है तो यह मुस्कान उन शहीदों को सलाम करती है जिनकी वजह से मुंबई आज भी तेज गति से बैखौफ होकर दौड़ रही है।
दहशतगर्दों का मंसूबा ही होता है ऐसे हमलों से देश को तोड़ना। नागरिकों का हौसला तोड़कर देश को बेपटरी करना। तो हमें उनके मंसूबों को पूरा नहीं होने देना है। शहीदों की बात करते हुए निर्माण मजदूर सिर पर र्इंट ढो रहा है और आॅटो चालक पीछे बैठी सवारी को बता रहा है कि हमारे गांव का बेटा भी शहीद हुआ है, हमें बहुत गर्व है, इस बार गांव जाएंगे तो उसके घर जरूर जाएंगे। हमारे गांववालों ने फैसला कर लिया है कि गांव के प्रवेश द्वार पर उसकी आदमकद मूर्ति लगाएंगे। आॅटोवाला बताता है कि वह भी सेना में भर्ती होना चाहता था, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।
आॅटोवाले की यही बातें बताती हैं कि शोक के समय में हम प्रेम से इकट्ठा होना नहीं भूले हैं। 40 जवानों की शहादत के बाद भी उसे मलाल है कि वह सेना में भर्ती नहीं हो पाया। यह इन्ही भावनाओं को सहेजने का समय है। स्कूलों में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में बच्चे सबसे ज्यादा ‘सोल्जर’ बनना पसंद करते हैं। देश के हर अभिभावक को अपने बच्चे के लिए नन्ही फौजी ड्रेस खरीदनी ही होती है। मेले या दुकान में जाकर ‘सोल्जर अंकल’ वाली बंदूक दिलानी ही पड़ती है। देश के किस बच्चे ने न गाया होगा कभी ‘नन्हा-मुन्ना राही हूं, देश का सिपाही हूं, बोलो मेरे संग जय हिंद’।
आज राहुल गांधी की भाषा में वही फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में ‘देश का सिपाही हूं’ गाते हुए बच्चे जैसी सहृदयता दिखी। चुनावी बुखार में तप रहे देश के लिए इससे बेहतर पाठ क्या हो सकता है। हम उम्मीद करेंगे कि गलतियों से सबक लेकर सरकार ने जो एलान किया है वह उसे पूरा करेगी। 40 जवानों की शहादत के सम्मान में आज पूरे देश के साथ एक ही बात कही जा सकती है- जय हिंद, जय हिंद की सेना।