
मौजूदा दौर में हिंदी साहित्य की मुख्यधारा में आंदोलनों की अनुपस्थिति का एक बड़ा कारण हिंदी समाज की जड़ों से…
मौजूदा दौर में हिंदी साहित्य की मुख्यधारा में आंदोलनों की अनुपस्थिति का एक बड़ा कारण हिंदी समाज की जड़ों से…
स्वीकार करना होगा कि राजनीतिक दलों की वोट बैंक की राजनीति की बाध्यता के चलते अपनी प्राथमिकताएं और व्यूहरचना होती…
आज अगर हिंदी का गंभीर साहित्य कुछ हजार पाठक-लेखकों तक सिमट कर रह गया है।
प्रेमचंद ने बिना मार्क्सवाद का नाम लिए कहा था- ‘हमारी कसौटी पर वही साहित्य खरा उतरेगा, जिसमें उच्च चिंतन हो,…
‘गोदान’ के प्रकाशन के अस्सीवें वर्ष में प्रेमचंद के इस उपन्यास का पुनर्पाठ भारतीय समाज की उन मूलभूत सच्चाइयों से…
सच है कि आलोचकों से लेखकों की नींद हराम होने की हिंदी साहित्य में लंबी परंपरा रही है।