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तीरंदाज: पुरुषार्थी का पुरुषार्थ
मान्यवर मुस्कराए- दाढ़ी कर्म का नहीं, बल्कि मन का पुरुषार्थ है। मन चंगा तो कठौती में गंगा। अर्थात कुछ करो या न करो, कठौती में पानी जरूर बनाए रहो। दाढ़ी पुरुषार्थ की कठौती का पानी है।
मान्यवर मुस्कराए- दाढ़ी कर्म का नहीं, बल्कि मन का पुरुषार्थ है। मन चंगा तो कठौती में गंगा। अर्थात कुछ करो या न करो, कठौती में पानी जरूर बनाए रहो। दाढ़ी पुरुषार्थ की कठौती का पानी है।